दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा नज़दीक नीटू दा आरा भनूपली में तीन दिवसीय 4 से 6 अप्रैल भगवान शिव कथा का भव्य आयोजन किया गया।  जिसके प्रथम दिवस की अध्यक्ष्ता करते हुए सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की परम शिष्या साध्वी श्वेता भारती जी ने भगवान शिव के सुन्दर रूप की महिमा को श्रवण करवाते हुए कहा कि भगवान शिव जी का चरित्र हमारे लिए प्रेरणा स्त्रोत है। जिनके जीवन चरित्र के माधयम से इंसान इस संसार में कैसे रहना है यह समझ सकता है। क्योंकि चरित्र एक ऐसा धन है जो जिसके पास है वह संसार का सबसे धनी व्यक्ति है। अगर किसी के पास चरित्र नही है तो उसके पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नही है।
                         आगे साध्वी जी ने कहा कि संसार का अटल नियम है कि कुछ भी बनाना हो उसके लिए तरतीब, विवेक और समय की जरूरत पड़ती है। एक छोटी सी झोपड़ी को बनाने के लिए भी इन सभ की जरूरत पड़ती है। अगर कोई गांव या शहर उजाडऩा हो तो उसके लिए कोई सयाणप या तरतीब की जरूरत नही बल्कि उसे दो-चार मूर्ख ही उजाडऩे के लिए काफी है। यहां किसी चीज को बनाने के लिए कई साल लग जातै है वही उसे तबाह करने के  लिए कुछ ही पल लगते है। एक बात और सृजन की भावना किसी आम दिमाग में से नही निकलती। प्रमात्मा ने धरती का सृजन किया है लेकिन स्वार्थी लोगो ने देशो और सरहदों के नाम पर उसे बांट कर रख दिया है। प्रमात्मा ने एक इंसान बनाया था लेकिन खुदगर्ज इंसान अपने आपको कई तरह के सामाजिक दायरो बांट लिया है। इंसान तब और घृणा के योगय हो गया जब उसने प्रमात्मा के नाम पर भी बटवारा कर लिया। अगर झुठ सत्य को तोडऩे की बात करें तो सत्य कभी नही टुट सकता बेशक कुछ समय के लिए सत्य टुटता हुआ नजर आता है। लेकिन सत्य की कीमत फिर भी बरकरार रहती है। जैसे कोई पत्थर सोने के प्याले को तोड़ दे तो सोना टुटा तो जरूर लेकिन उसकी मूल कीमत में कोई कमी नही आती। ठीक इसी तरह लोगो ने प्रमात्मा को बांटने की बहुत कौशिश की लेकिन प्रमात्मा इंसान की इन कच्ची धारणायों में कभी कैद नही हुआ। प्रमात्मा ने महापुरूषों के जरीए इंसान के सामने अपने तक पहुँचने का एक ही मार्ग बताया है। बेशक इंसान उसके पास पहुंँचने के लिए अनेको मनमत के मार्ग बना लिए है। हम जिस मार्ग को भुलकर अपने बनाए रास्तो पर चल रहै है उससे हम प्रमात्मा से दुर होते जा रहै है। लेकिन जब इंसान के भीतर पूर्ण गुरू का आगमन होता है वह उसे शाशवत मार्ग के विष्य में बता देते है जिसे वह भुस चुका है। जब इंसान गुरू के बताए मार्ग पर चलता है तो वह प्रमात्मा को प्राप्त कर लेता है। उससे उसके भीतर पर उपकार की भावना जन्म लेती है। संखेप में कहे तो प्रमात्मा को जानने के बाद ही इंसान को समझ आती है कि हम सभ उस प्रमात्मा की ही संतान है। उसके भीतर से दुष्पृविर्तीयां खत्म हो जाती है उसके भीतर सद्गुणो का जन्म होता है। गुरू इंसान के मन के अंधेरे को मिटाकर उसके भीतर प्रकाश की रौशनी को भरता है। जिससे हमारे भीतर अच्छे विचारो का सृजन होता है। हम इस बात को रोजाना जिन्दगी के अनुभव के आधार पर अच्छी तरह जानते है कि अन्धेरे में विनाश ही होता है और प्रकाश में सृजन। इस हमें प्रभु की सृष्टि में विनाश की नही बल्कि सृजन की मिशाल बनना है और अपने जीवन को सार्थक करना है।

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