दिल्ली। यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद वैश्विक ऊर्जा बाजार में जिस तरह का उथल-पुथल मचा है उसका साफ असर भारत की इकोनोमी और आम भारतीय के जीवन पर दिखने लगा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की महंगाई की वजह से ना सिर्फ भारत की महंगाई दर बेकाबू हो रही है बल्कि आम मध्यम वर्ग पर भारी बोझ पड़ा है। इसी तरह से प्राकृतिक गैस की कीमतों में भारी वृद्धि की वजह से वर्ष 2030 तक देश की इकोनोमी में गैस की हिस्सेदारी बढ़ा कर 15 फीसद करने के लक्ष्य पर भी सवाल उठ रहा है। तो कोयले की बढ़ती हुई कीमतों की वजह से कोयला आयात करना मुश्किल हो गया है और इससे देश में बिजली का उत्पादन प्रभावित हो रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक की मानें तो ऊर्जा सेक्टर की चुनौतियों को देखते हुए और वर्ष 2070 तक देश को नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य को देखते हुए एक व्यापक ऊर्जा प्लानिंग रणनीति बनाने की जरूरत हैपिछले दिनों जारी आरबीआइ की करेंसी व फाइनेंस रिपोर्ट में भारत की ऊर्जा स्थिति का विस्तृत आकलन किया गया है। इसमें कहा गया है कि कच्चे तेल का उत्पादन भारत में वर्ष 1990 के दशक के बाद स्थित है और असलियत में पिछले दस वर्षों में आयातित तेल पर भारत की निर्भरता बढ़ी है। प्राकृतिक गैस का उत्पादन भी लगातार घट रह है। इसके लिए जिन तथ्यों को जिम्मेदार माना गया है उसमें घरेलू कंपनियों की सीमित तकनीकी क्षमता भी एक है। आरबीआइ ने कहा है कि उक्त तीनों उत्पादों को लेकर विदेशों पर भारत की बढ़ती निर्भरता की वजह से देश को अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी बढती हुई कीमतों और वैश्विक सप्लाई चेन में गड़बड़ी होने की स्थिति में भुगतना पड़ता है। वैसे वर्ष 2022 के अंत में कुछ घरेलू फील्डों में कुछ उत्पादन बढ़ने की संभावना है लेकिन इसका कितना असर होगा यह देखना होगा। इस बारे में केंद्रीय बैंक ने दो अहम सुझाव दिए हैं। पहला, ओएनजीसी व निजी कंपनियों को विदेशी तकनीक के जरिए उत्पादन बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। दूसरा, केंद्र सरकार को निवेश आकर्षित करने के लिए कंपनियों को बेहतर कीमत वसूलने की छूट मिलनी चाहिए।

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