पटना : बिहार के मुजफ्फरपुर में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी AES से अब तक 45 बच्चों की मौत हो चुकी है. पूरे राज्य में अब तक करीब 60 बच्चों की जान जा चुकी है. लेकिन नीतीश सरकार इसका समाधान ढूंढने में पूरी तरह नाकाम नजर आ रही है. इस बीमारी को राज्य में आम बोल चाल की भाषा में चमकी बुखार भी कहा जाता है.
अगर इसके व्यापक असर की बात करें तो पिछले कुछ सालों में मुजफ्फरपुर और आस-पास के जिलों में इंसेफेलाइटिस एक हजार से ज्यादा बच्चों की जान ले चुका है. सच कहा जाए तो करीब दो दशक से कहर बरपा रही इस बीमारी पर देश और विदेश की कई संस्थाओं नें शोध किया. लेकिन आज भी यह बीमारी रहस्यमयी बनी हुई है. हालात ऐसे हैं कि इस बीमारी से पीड़ित बच्चों के लक्षणों का इलाज किया जाता है न कि बीमारी का. हालांकि दुर्भाग्य की बात है कि देश भर में हाय तौबा मचाने वाली इस बीमारी पर शोध कार्य ठप पड़ गया है.
ये संस्थाए कर चुकी हैं शोध
इंसेफेलाइटिस को लेकर कई संस्थाओं ने मुजफ्फरपुर में रिसर्च वर्क किया है, जिनमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी,(एनआईवी) पूना, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल,(एनसीडीसी) नई दिल्ली, सेंट्रल फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) अटलांटा यूएसए, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कम्युनिकेबल डिजीज (एनआईसीडी) नई दिल्ली और राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीच्यूट (आरएमआरई) पटना, लेकिन दुर्भाग्य है कि सारे शोध कार्य बंद हो गए. जबकि आज आरएमआरआई पटना में बीमार बच्चों का ब्लड सीरम भेजकर रिसर्च की खानापूर्ति हो रही है.
इस बीमारी को स्वास्थ्य विभाग कितना समझ पाया है और शोध की दिशा में फिलहाल क्या हो रहा है इसे समझने के लिए हमने सबसे पहले शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. गोपाल सहनी से संपर्क किया. उनसे हुई बात के मुताबिक इस बीमारी पर अभी गहन शोध की जरूरत है, लेकिन फिलहाल कोई काम धरातल पर नही दिख रहा है.