इस बात से शायद ही कोई अनजान हो कि पिछले कुछ सालों से कैसे कुछ लोग लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए उकसा रहे हैं और काफी हद तक इस में सफल भी रहे हैं ईसाई मत के प्रचार के नाम पर नए उभरे ईसाई मत के डेरे धार्मिक खुलेपन व ग्लैमर का बेमेल जोड़ बनाकर चल रहे हैं। यह डेरे लोगों में खुलेआम अंधविश्वास फैला रहे हैं सिख व हिन्दू धर्म के लोगों ने कभी भी ईसाई बनने में रूचि नहीं दिखाई।
ईसाई धर्म में शामिल होने वालों के धर्म बदलते ही ईसाई मत वाले नए नाम रख लिए जाते हैं, परन्तु नए उभरे डेरों के न तो प्रमुखों ने ही अपने नाम बदले हैं तथा न ही श्रद्धालु बन रहे लोगों को नाम व हुलिया बदलने के लिए कहा जाता है।
हिन्दू खत्री परिवार के जमपल खांबरा वाले अंकुर नरूला व उनकी पत्नी सोनिया नरूला, खोजेवाला ओपन डोर चर्च के मुख्य प्रचारक जाट सिख परिवार में जन्मे हरप्रीत सिंह दयोल व उनकी पत्नी गुरशरन कौर दयोल ईसाई प्रचारक बनकर अपने पहले नामों से ही जाने जाते हैं। हरियाणवी जाट बजिन्द्र सिंह ने भी अपना नाम नहीं बदला
डेरों की प्रार्थना वाली सभाओं सें बाइबल भी पढ़ी जाती है तथा ईसाई मत का प्रचार भी खूब किया जाता है परन्तु इस समय यह प्रचारक डेरे पर आए श्रद्धालुओं को ईसाई मत धारण करने के लिए कहने की बजाय उनकी मुरादें पूरी करने, मुश्किलें हल करने व हर तरह की समस्याओं का प्रार्थना द्वारा निपटारा करने के करिश्मे द्वारा प्रभावित कर अपना पंथ बड़ा करने के प्रयत्नों में हैं।
इन डेरों में सभी धर्मों व वर्गों के लोग पहुंचते हैं। खास बात है कि सिख व हिन्दू धर्म से संबंधित लोग भी काफी संख्या में आते हैं। प्रार्थना सभाओं में मंच पर तीखे संगीत बजाने वाली टोलियों में नौजवान लड़के-लड़कियां शामिल होते हैं। श्रद्धालुओं में बैठी महिलाएं व पुरूष भी खुल कर नाचते हैं। इन प्रचारकों व डेरों की कार्यशैली का अंदाज न तो रूहानी है तथा न ही सादगी वाला है।
यहां हर मामले में पूरी चमक-दमक से ही लोगों को प्रभावित किया जाता है। मुख्य प्रचारक सुंदर पोशाकों वाले नौजवान हैं। उनकी स्टेजों पर तड़क-भड़क वाले गीत-संगीत व शोर मचा रहता है। चमत्कारी बातों से लोगों पर जादुई असर डालना इनकी कार्यशैली का मूल उद्देश्य है। कुछ ही वर्षों में इन डेरों के पास आया अंधा पैसा व बनाई सम्पत्ति एक बड़ा प्रश्न खड़ी करती हैं।
खांबरा व खोजेवाला में इतने बड़े व आलीशान चर्च बन रहे हैं, जो ईसाई भाईचारा पिछले सौ वर्ष में भी नहीं बना सका था। सत्संग के दौरान कई बार ज़रूरतमंदों को प्रभावित करने के लिए इन डेरों में सामान व पैसे दिए जाने की भी चर्चा है। गांवों के लोग यह भी प्रश्न कर रहे हैं कि इन डेरों पर चढ़ावे की कोई रीत नहीं है तो फिर इन डेरों के प्रचारकों ने कुछ ही वर्षों में इतने बड़े डेरे कैसे बना लिए तथा उनकी शाही ठाठ-बाठ वाली ज़िन्दगी का दारोमदार किन साधनों पर है?
खांबरा में अंकुर नरूला के परिवार की एक दुकान है तथा एक कोचिंग कालेज वह समाज सेवा के रूप में चला रहा है। इसी तरह हरप्रीत सिंह दयोल भी मध्यवर्गीय जाट परिवार में है, जिसकी पैतृक ज़मीन 15 एकड़ बताई जाती है। हरियाणवी जाट बजिन्द्र सिंह ने रिहायश चंडीगढ़ रखी हुई है तथा सप्ताह में दो दिन सत्संग करने वहीं आता है।
पता चला है कि दुषकर्म के केस में जेल में बंद होने के दौरान उसका हमशकल भाई प्रार्थना सभा लगाता रहा है। ताजपुर में चौराहे में बैठे लोग प्रश्न कर रहे थे कि जो व्यक्ति स्वयं को दुष्कर्म जैसे अत्यंत घिनौने जुर्म में जेल जाने से नहीं बचा सका, वह भला अन्य नोगों के कष्ट कहां से दूर कर सकेगा? स्वास्थ्य सुविधाओं की जगह हर मरीज़ के इलाज के लिए आंखे बंद कर के प्रार्थना द्वारा दुख दूर करने की नई चलाई यह रीत अंधविश्वास का नया रूप है।
गांवों में लोग इन डेरों में शामिल होने वाले साबत सूरत सिखों के बारे में सरेआम रोष व्यक्त करते हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं कि लगातार चल रहा आर्थिक संकट पंजाबी समाज में बेरोजगारी, भूख व बेचारगी पैदा कर रहा है, जिसके मानसिक तौर पर खोखले हुए हमारे लोग फिर रूकावटें दूर करने के लिए संघर्ष व जद्दोजहद या सकारात्मक सक्रियता मे आगे बढऩे की जगह डेरेदारों के चरनों मे लग कर पार उतारा करने का आसान रास्ता अख्तियार कर रहें हैं
चाहे इस समय यह डेरे खुले माहौल में चल रहे हैं, परन्तु इनके द्वारा ज़ोर-शोर से एक खास धर्म का किया जा रहा प्रचार व बनाए जा रहे बड़े-बड़े अस्थान आते वर्षों में पंजाबी समाज में बड़ी उथल-पुथल को जन्म दे सकते हैं। दरअसल जब कभी भी किसी क्षेत्र की स्थापित आबादी, बनावट व विशेष पहचान को खराब करने या बदलने का प्रयास किया जाता है, तो नतीजे कभी भी अच्छे नहीं निकलते हैं