नई दिल्ली :    देखा जाय  तो भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर सालों से चला  आ  रहा  .  चीन ने भारत समर्थित फैसलों का विरोध किया है. वहीं, भारत ने भी बीजिंग को हर मंच में खदेड़ा हे  देखा गया है की  अंग्रेजों के एक फैसले को लेकर भारत और चीन एक साथ खड़े हो गए हैं. है वही  संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन  में यूरोपीय यूनियन की ओर से कार्बन बॉर्डर टैक्स का प्रस्ताव दिया गया, जिसका भारत और चीन समेत विकासशील देशों ने खुलकर विरोध किया. ईयू ने कार्बन बॉर्डर टैक्स से एकतरफा व्यापार उपायों को शामिल करने की कोशिश की. आइये आपको बताते हैं आखिर इस टैक्स से भारत-चीन के अलावा अन्य विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को क्या नुकसान हैं.

यह टैक्स, खासकर भारत और चीन जैसे देशों से आयातित प्रोडक्ट्स  लोहा, इस्पात, सीमेंट और एल्युमीनियम पर यूरोपियन यूनियन में लगने वाला कर है. कार्बन बॉर्डर टैक्स को लेकर ईयू ने यह तर्क दिया कि इस कदम से घरेलू स्तर पर बनाए गए सामान के लिए समान अवसर पैदा होंगे, साथ ही इंपोर्ट किए गए प्रोडक्ट्स से कार्बन उत्सर्जन को कंट्रोल करने में मदद मिलेगी.

इस फैसले पर  विकासशील देशों ने यूरोपीय संघ के इस फैसले को अपने लिए हानिकारक बताया. भारत-चीन समेत इन देशों ने कहा कि कार्बन बॉर्डर टैक्स से उनकी अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान होगा. विकासशील देशों ने संयुक्त राष्ट्र के जलवायु नियमों का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी देश को कार्बन उत्सर्जन में कमी की रणनीति दूसरे देशों पर नहीं थोपनी चाहिए.

 

कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टी जका अहम लक्ष्य ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे पर एक संयुक्त योजना बनाने के लिए विभिन्न देशों को एक साथ लाना है. इसमें विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए आर्थिक सहायता देना का भी प्रावधान है.1995 से हर साल यह सम्मेलन आयोजित किया जाता

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 2024 COP29) 11 नवंबर से अज़रबैजान की राजधानी बाकू में शुरू हुआ. इस समित में लगभग 200 देशों के प्रतिनिधियों, बिजनेस लीडर्स, जलवायु वैज्ञानिक, पत्रकार और विभिन्न विशेषज्ञों के शामिल होने ने की उम्मीद है. यह सम्मेलन 22 नवंबर तक चलेगा.

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