
केएमवी विरासत एवं स्वायत्त संस्था कन्या महा विद्यालय जालंधर के स्नातकोत्तर पंजाबी विभाग के द्वारा मशीनी बुद्धिमत्ता दे प्रसंग विच मानवता दी पुनरकल्पना विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया । पंजाब साहित्य अकादमी तथा पंजाब कला परिषद प्रायोजित इस सेमिनार में अध्यक्षता श्री दीपक बाली जी (सलाहकार, पंजाब हैरिटेज टूरिज्म प्रमोशन बोर्ड ) ने की।कार्यक्रम का शुभारंभ ज्योति प्रज्ज्वलन और सुरजीत पातर की सुप्रसिद्घ कविता की संगीत विभाग की छात्राओं के द्वारा प्रस्तुति के साथ हुआ। विद्यालय प्राचार्या प्रो. डॉ. अतिमा शर्मा द्विवेदी ने इस अवसर पर पधारे गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया अपने संक्षिप्त एवं प्रभावशाली संबोधन में उन्होंने कहा कि संगोष्ठी में विचार चर्चा के लिए चयनित विषय समसामयिक समय मे अत्यंत प्रासंगिक तथा महत्वपूर्ण है ।उन्होंने कहा कि विगत डेढ़ शताब्दी से हर सामयिक परिस्थिति का अग्रणी रहकर मुकाबला करने यह गौरवशाली संस्था निश्चित ही इस विषय पर विचार चर्चा का उपयुक्त मंच है। स. सरवनजीत सवी(चेयरपर्सन, पंजाब कला परिषद, चंडीगढ़) ने अपने वक्तव्य में पंजाब कला परिषद के द्वारा सम्पूर्ण पंजाब के विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में आयोजित की जा कलापूर्ण एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का विहंगम परिचय प्रस्तुत करते हुए इन गतिविधियों के उद्देश्य एवं सकारात्मक प्रभावों पर प्रकाश डाला। अपने संबोधन का समापन सिलिकॉन दा दिल कविता की भावपूर्ण प्रस्तुति के साथ किया। श्री दीपक बाली(सलाहकार, पंजाब हैरिटेज टूरिज्म प्रमोशन बोर्ड ) ने अपने अध्यक्षीय व्याख्यान में विरासत संस्था के रूप में महिला शक्ति को शिक्षित एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिए गत डेढ़ सदी से समर्पित एवं सक्रिय संस्था कन्या महाविद्यालय के सामाजिक उत्थान के लिए दिए जा रहे योगदान की सराहना की। संगोष्ठी के विवेच्य विषय पर सटीक विचार प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि निश्चित ही संस्कृति के संरक्षण के लिए उसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता और तकनीक के सहयोग से नए और सर्वसुलभ रूप में प्रस्तुत करना समय की आवश्यकता है। तकनीकी सत्र के दौरान पहले वक्ता डॉ. कमलजीत सिंह((डायरेक्टर यूनिवर्सिटी कम्प्यूटर सेंटर, पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला) ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संबंधित मशीन लर्निंग, स्मार्ट डीवाईसिज़, स्मार्ट सिटी, ऑफिस, स्मार्ट होम, रोबोटिक्स, स्मार्ट, सेंसर्स, डीपफेक आदि अवधारणाओं से अवगत करवाते हुए कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वस्तुतः मशीन को मनुष्य की तरह सोचने और कार्य करने के योग्य बनाती है।इसके उपयोग से उत्पादकता बड़ी है किंतु आजीविका और नैतिक मानदंडों के लिए संकट की संभावना है अतः इसे नैतिक और संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है और इसके लिए भाषाविदों और साहित्यिक वर्ग का योगदान महत्वपूर्ण है। डॉ. मनजिंदर सिंह (अध्यक्ष, पंजाबी अध्ययन स्कूल, जी. एन. डी. यू अमृतसर) ने अपने व्याख्यान में भाषा और साहित्य की दृष्टि से ए. आई पर विचार करते हुए कहा कि तकनीक हर युग में मानव समाज के विकास का अहम हिस्सा रही है। मनुष्य ने तकनीक के सहयोग से ही हर युग मे प्रगति की है। हर तकनीक के अपने फ़ायदे और नुकसान हैं ।आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भी बहुत सी भाषाओं और उनके व्यवहार को सीखने की क्षमता है नए युग की यह तकनीक मशीन के माध्यम से मानव शरीर के सामर्थ्य को बढ़ाने में सक्षम है अतः इससे भयभीत होने की अपेक्षा इसके उपयोग को मानव मस्तिष्क के सामंजस्य अधिक मानवीय और संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है। डॉ. मनमोहन सिंह (पूर्व आई. पी. एस अधिकारी चंडीगढ़) ने अपने अध्यक्षीय व्याख्यान में कहा कि प्रत्येक युग में अपने समय के अनुरूप नई तकनीक का विकास मानव की विशेषता है हर टेक्नोलॉजी अपने साथ नई, स्वतंत्रता और चुनौतियां लेकर आती है। इन्हीं चुनौतियों के साथ संघर्ष से हर युग के अनुरूप नया जीवन दर्शन विकसित होता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का यह समय भी मानव को और संवेदनशील और जिम्मेदार बनने की भावना को आंदोलित करने वाला समय है।यह मशीन और मस्तिष्क के समन्वय का युग है और भाषा मर्मज्ञों और साहित्यकारों की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है। संगोष्ठी के अंत में डॉ हरप्रीत ने सभी स्रोत वक्ताओं, विशिष्ट अतिथियों एवं अन्य महाविद्यालयों से आए प्राध्यापकों के प्रति आभार व्यक्त किया।