जालंधर: दोआबा हॉस्पिटल में, मरीज की मौत पर हंगामा, इन सब हंगामों के बीच क्या आपने सुना कि डॉक्टर पर वास्तव में कोई कार्रवाई हुई, बात केवल राजीनामे तक ही निपट कर रह जाती है। ज्यादा से ज्यादा सिविल सर्जन एसआईटी बिठा देते हैं, जिसमें डॉक्टर और अस्पताल की फेवर में ही फैसले लिए जाते हैं। या मरने वाले के परिजन बहुत पढ़े लिखे हो तो केस लंबा खींचा जाता है अन्यथा जीत उसी अस्पताल की होती है जिस अस्पताल के डॉक्टर द्वारा लापरवाही की जाती है। चाहे उसमें मरीज की जान ही क्यों ना चली जाए। क्योंकि अस्पतालों में मरीज के प्रति प्यार और अपनापन तो बिल्कुल भी नहीं होता।
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