नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस एस मुरलीधर का पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में तबादला कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस मुरलीधरन के तबादले की सिफारिश 12 फरवरी को ही की थी, जिसे अब मंजूर कर लिया गया है लेकिन तबादले की सिफारिश का विरोध करते हुए बार एसोसिएशन ने आग्रह किया था कि इस पर ‘फिर से विचार’ किया जाए। एसोसिएशन का कहना है कि ‘ऐसे तबादले से न्यायिक व्यवस्था में आम मुकदमेबाजी का विश्वास कम होता है और इससे हमारे संस्थान की गरिमा पर प्रभाव पड़ता है।’ ये वही मुरलीधरन हैं जिनके तबादले को लेकर कॉलेजियम पहले भी दो फाड़ हो चुका है।
एक याचिकाकर्ता ने आरटीआई के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से मांग की थी कि कितने जजों ने अपनी संपत्ति घोषित की थी। यह मामला कोर्ट में पहुंचा और 2010 में याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया गया। ये अहम फैसला सुनाने वाली पीठ में भी मुरलीधर शामिल थे।दिल्ली हाईकोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, एस. मुरलीधर ने सितंबर 1984 में चेन्नई से कानून की प्रैक्टिस शुरू की थी। साल 1987 में वे बतौर वकील सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में स्थानांतरित हो गए। वे सुप्रीम कोर्ट कानूनी सेवा समिति के वकील के रूप में सक्रिय थे और बाद में दो कार्यकाल के लिए इसके सदस्य भी बने।
जज बनने से पहले मुरलीधर ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों और नर्मदा बांध के विस्थापितों की भी लड़ाई लड़ी। उन्हें पीआईएल के कई मामलों में और दोषियों को मौत की सजा देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया था।मुरलीधर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और भारत निर्वाचन आयोग के वकील भी रह चुके हैं। दिल्ली हाईकोर्ट में जज बनने से पहले दिसंबर 2002 से मई 2006 तक वे विधि आयोग के अंशकालिक सदस्य थे। मुरलीधर को 2003 में दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी से सम्मानित किया गया था। वह अगस्त 2004 में लेक्सिसनेक्सिस बटरवर्थ प्रकाशित द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक `लॉ, पॉवर्टी एंड लीगल एड: द एक्सेस टू क्रिमिनल जस्टिस ‘के लेखक हैं।