दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के द्वारा मैरिटोन होटल, जालंधर में संगीतमय भजन संध्या ‘शिवोहम’ का आयोजन किया गया। भजन संध्या के प्रारंभ में स्वामी परमानंद जी, स्वामी विश्वानंद जी, स्वामी सदानंद जी, स्वामी सज्जनानंद जी एवं गौतम कुकरेजा, गौरव कुकरेजा एवं जालंधर शाखा प्रमुख साध्वी पल्लवी भारती जी ने भगवान शिव जी के दरबार में दीप प्रज्वलित किया एवं प्रभु को माल्यार्पण की। प्रभु के प्रति अलौकिक भावों से परिपूर्ण भजनों ने उपस्थित श्रद्धालुगणों को आनंद विभोर किया। इस कार्यक्रम के अंतर्गत दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री रूपेश्वरी भारती जी ने
प्रवचनों में बताया कि यदि मानव भगवान शिव के चरित्र से प्राप्त शिक्षा व संदेश को जीवन में धारण कर ले तो निःसंदेह एक आदर्श मानव का निर्माण होगा। जब एक आदर्श मानव का निर्माण होगा तब एक आदर्श परिवार का गठन होगा। यदि एक आदर्श परिवार का गठन होगा तो एक आदर्श समाज, आदर्श राष्ट्र, एक आदर्श विश्व स्थापित होगा। परंतु विडम्बना का विषय है की आज कितनी ही प्रभु की गाथाएं गाई जा रही हैं पर समाज की दशा इतनी दयनीय है मात्र केवल प्रभु की कथा को कह देना या सुन लेना ही पर्याप्त नहीं है। प्रभु के चरित्र से शिक्षा ग्रहण कर उसका जीवन में अनुसरण करना होगा।

सुश्री रूपेशवरी भारती जी ने भगवान शिव के अदभुत श्रृंगार की विवेचना की। उन्होंने बताया कि भगवान शिव का यह अदभुत श्रृंगार रहस्यात्मक है।उनके स्वरूप का एक एक पक्ष शिक्षाप्रद है। प्रत्येक वस्त्रालंकार एक संकेत है शवत्व से शिवत्व की ओर बढ़ने का। भगवान शिव की बिखरी हुई जटाएं हमारे बिखरे मन का प्रतीक है। जिस प्रकार भगवान शिव ने जटाओं को समेट कर उनका मुकुट बनाया है उसी प्रकार आवश्यक है कि हम अपने मन को संसार के विकारों से हटाकर प्रभु में लगाएं। मनुष्य के भीतर जो विकार हैं उसका कारण भी मन है। जब तक इंसान का मन विकसित नहीं हुआ तब तक वह किसी समाधान का अंग नहीं बन सकता। यदि समाज में परिवर्तन लाना है तो सबसे पहले व्यक्त्ति की चेतना और अंतर मन में परिवर्तन लाना होगा।अध्यात्म द्वारा उसे जागृत करना होगा। जैसे एक डाल काट देने से वृक्ष नहीं मरता डाल पुनः उग जाती है।वृक्ष के प्राण जड़ है। जड़ को खत्म करने पर ही वृक्ष नष्ट हो सकता है। इसी तरह समाज में पनप रहे हर कुरीति, बुराई,हिंसा की जड़ मन है। इस मन रूपी जड़ को परिवर्तित करने पर ही समाज में परिवर्तन संभव है और यह परिवर्तन केवल ब्रह्म ज्ञान द्वारा ही आ सकता है। भगवान शिव के तन पर लगी भस्म मानव तन की नश्वरता को ओर संकेत है। गले में धारण किए सर्प काल का प्रतीक हैं। साध्वी जी ने बताया कि भगवान शिव त्रिनेत्रधारी कहलाते हैं उनके स्वरूप का यह पक्ष प्राणिमात्र को एक गूढ़ आध्यात्मिक संदेश देता है।
साध्वी जी ने यह भी बताया कि
समाज के लिए आवश्यकता है कि मानव अपने जीवन में सुसंस्कारों और संस्कृति को धारण करें ।संस्कृति का विकास जीवन एवं समाज का विकास है ।भारत की संस्कृति विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है जिसका कारण है कि वह आध्यात्म से पोषित है। आज के तनाव ग्रस्त मनुष्य को यदि अपने जीवन के तनाव को दूर करना है तो उसे अपने जीवन के आधार अध्यात्म के साथ जुड़ना होगा। ईश्वर, शांति स्वरूप है अतः उसके साथ जुड़कर ही हम अपने जीवन में आंतरिक शांति एवं संतुष्टि को प्राप्त कर सकते हैं।

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