दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, नूरमहल आश्रम में वैशाखी के पर्व पर मासिक भंडारे का आयोजन किया गया। मंच सञ्चालन में स्वामी उमेशानंद जी बताया कि जब एक साधक अपने जीवन में गुरु की वाणी, उसके विचारों को अपने जीवन में आत्मसात कर लेता है तो उसका जीवन पवित्रता की राह पर चलता हुआ सर्वश्रेष्ठता को हासिल करता है। उसी गुरु की वाणी को वैशाखी के विशेष पर्व पर स्वामी यशेश्वरानन्द जी ने गुरबाणी शबद ‘वैशाख धीरनि क्यूँ वाडीयां जिना प्रेम बिछोह’ के द्वारा प्रस्तुत किया।
जिसके बारे में आगे सत्संग समागम में स्वामी रणजीतानन्द जी ने बताया कि वैशाखी का पर्व प्रत्येक इंसान के लिए खुशी का दिन होता है, किन्तु एक साधक के जीवन में बसंत, हरियाली तभी आती है जब उसका मिलन अपने प्रियतम प्यारे प्रभु से हो जाता है। इसी के साथ साधवी संयोगिता भारती जी ने बताया कि गुरु का निष्ठावान सेवक बनने के लिए जीवन में तीन सूत्रों -उत्साह, तपस्या और समर्पण को अपने जीवन में धारण करना चाहिए। इसे अपनाकर एक सेवक अपने अर्थहीन जीवन को अर्थपूर्ण बना सकता है। अंत में आए हुई संगत ने भजनों में मंत्र मुग्ध होए प्रभु भक्ति में डूब कर इस पर्व का भरपूर आनंद मनाया।

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