दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा शिव मंदिर, दकोहा में भजन संध्या का कार्यक्रम किया गया। इस कार्यक्रम में गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी पूनम भारती जी ने प्रवचन किए, भजनों का गायन साध्वी रीता भारती, साध्वी पूषा भारती, साध्वी वसुधा भारती द्वारा किया गया।
साध्वी जी ने प्रवचनों में बताया कि कुछ लोग समझते हैं कि समाज और परिवार के प्रति अपने सभी कर्तव्यों को पूर्ण निष्ठा से निभाना ही काफी है। इसमें अध्यात्म ज्ञान की जरूरत नहीं है। लेकिन अध्यात्म ज्ञान के बिना मानव के कर्मों में पूर्ण निष्ठा नहीं आ सकती। क्योंकि ज्ञान के प्रकाश के बिना इंसान के भीतर मानसिक विकारों का बोलबाला रहता है ।यह विकार इंसान को भीतर से खोखला व कमजोर बना देते हैं। जिसके कारण इंसान अपने कर्मों को पूर्ण निष्ठा से पूरा नहीं कर पाता। यही तो हुआ था कुरुक्षेत्र की भूमि पर वीर अर्जुन के साथ। वह समाज और पांडव परिवार के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करना चाहता था। इसलिए धर्म युद्ध में पूरे उत्साह के साथ उतरा था।परंतु दूसरे ही पल जब उसने अपने गुरुजनों को युद्ध के लिए सामने खड़ा देखा तो उसका मोह जाग उठा।भीतर के इस एक विकार से ही श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन का मनोबल पूरी तरह गिर गया। ऐसे में पूर्ण निष्ठा से कर्तव्य करना तो दूर उसे अपने कर्तव्यों का बोध तक भी ना रहा।अर्जुन जैसे महान धनुर्धर ने जब केवल मात्र एक विकार के सामने घुटने टेक दिए तो फिर एक साधारण मानव तो पांच विकारों के भयानक पाश में बंधा हुआ है। जिसके कारण उसके कर्तव्य निष्ठा से पूर्ण नहीं हो सकते। यदि वह किसी की सहायता करता है तो उसका हृदय अहंकार से भर जाता है ।यदि किसी सगे संबंधी के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करता है तो उसमें स्वार्थ की मिलावट हो जाती है। और फिर इसी अहंकार,स्वार्थ व मोह को पूरा करने के लिए वह हर प्रकार के सही गलत कर्म करने लग जाता है।इसलिए जहां आंतरिक विकार हैं वहां निष्ठा जन्म नहीं ले सकती ।ये मन के विकार केवल अध्यात्म ज्ञान के द्वारा ही नष्ट किया जा सकते हैं। जैसे भगवान श्री कृष्ण ने मोहग्रस्त अर्जुन को ‘ब्रह्मज्ञान’प्रदान कर उसके वास्तविक स्वरूप का साक्षात्कार कराया था। तभी वह मोहभ्रम से मुक्त होकर अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए फिर से गांडीव उठा पाया। इसलिए जीवन का परम कर्तव्य है श्री कृष्ण जैसे पूर्ण सतगुरु से अध्यात्म ज्ञान अर्थात ईश्वर साक्षात्कार की प्राप्ति। जिसके बाद हमारे भीतर के सभी विकार खत्म होते चले जाते हैं।और तभी हम अपने अन्य सभी कर्तव्यों को बिना अहंकार एवं परमार्थ भाव से पूरा कर पाते हैं।

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