
यह बात आज संस्कृत संगोष्ठी के दौरान केंद्रीय विश्वविद्यालय, हिमाचल प्रदेश के कुलाधिपति एवं पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित प्रोफेसर हरमोहिंदर सिंह बेदी ने कही। वह आज इस सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संस्कृत और पंजाबी का अटूट संबंध है और इस संबंध को पंजाबियों को कभी भी नहीं भूलना चाहिए। इसी संबंध के माध्यम से हम भारतीयता को भी समझेंगे और पंजाब को भी समझेंगे। इसलिए संस्कृत को बढ़ाने का हर संभव प्रयास व्यक्ति को, सरकार को और समाज को करना चाहिए।
यह कार्यक्रम केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली की आर्थिक अनुदान से सनातन धर्म महिला महाविद्यालय, जालंधर; संस्कृत भारती, पंजाब प्रांत; एवं गुरु विरजानन्द गुरुकुल महाविद्यालय, करतारपुर द्वारा आयोजित किया गया।
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे कुंवर विजय प्रताप जी ने कहा — “मैंने स्वयं संस्कृत के माध्यम से ही आईपीएस परीक्षा उत्तीर्ण की। संस्कृत साहित्य ने मुझे जीवन में धैर्य और उसके वास्तविक अर्थ को समझाया। विद्यार्थियों को भी मैंने संस्कृत के सहारे आईपीएस जैसी परीक्षाएँ उत्तीर्ण करने की व्यावहारिक बातें बताई हैं।” उन्होंने राजनीति पर विचार रखते हुए कहा कि संस्कृति के दृष्टिकोण से वही व्यक्ति नेता बन सकता है, जो विद्वान, विनम्र और योग्य हो।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता राजकीय महाविद्यालय, सेक्टर 42, चंडीगढ़ के संस्कृत विभाग के प्रोफेसर लखबीर जी थे। उन्होंने कहा कि संस्कृत और पंजाबी के आख्यानों में अद्भुत समानता है। जितने आख्यान, कथाएँ और कहानियाँ संस्कृत में मिलती हैं, उनका पूर्ण अनुवाद पंजाबी में भी उपलब्ध है। जैसे — “कदो-कदा, जदो-जदा” इत्यादि शब्दों के प्रयोग से यह सिद्ध होता है कि संस्कृति और पंजाबी का संबंध अनंत है।
उद्घाटन सत्र में सारस्वत अतिथि के रूप में डी.ए.वी. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर मनोज कुमार उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि “संस्कृत और पंजाबी के संबंध को जीवित रखने के लिए शिक्षण संस्थानों एवं सरकारों को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। मैं अपने विश्वविद्यालय में संस्कृत की उन्नति हेतु कुछ योजनाएँ प्रारंभ करने का विश्वास दिलाता हूँ।”
आज के कार्यक्रम का विषय था — “संस्कृत और पंजाबी का अनंत संबंध”। इस विषय पर विभिन्न महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों ने अपने पत्रवाचन प्रस्तुत किए। इनमें प्रमुख थे — प्रोफेसर नवीन चंद्र, डॉ. जसप्रीत कौर, आचार्य पुष्पराज जी।
छात्र-छात्राओं की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही। कन्या महाविद्यालय, सनातन धर्म महिला महाविद्यालय, डी.ए.वी. आयुर्वेदिक महाविद्यालय, सनातन धर्म संस्कृत महाविद्यालय (अमृतसर) आदि संस्थानों के विद्यार्थियों ने इस कार्यक्रम का लाभ उठाया।
स्वागत भाषण गुरुकुल करतारपुर के आचार्य डॉ. उदयन आर्य ने प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के अनुदान से आयोजित किया जा रहा है और भविष्य में भी ऐसे अनेक कार्यक्रम संस्कृत के प्रचार हेतु होंगे। धन्यवाद भाषण में उन्होंने विशेष रूप से केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का आभार व्यक्त किया और कहा कि “यदि संस्कृत भाषा समृद्ध होगी तो पंजाबी भाषा भी समृद्ध होगी, और जब पंजाबी भाषा समृद्ध होगी तो पंजाबी संस्कृति भी सुरक्षित रहेगी।”
द्वितीय सत्र की अध्यक्षता आचार्य वेदव्रत, संस्कृत विभाग, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार ने की। मुख्य वक्ता डॉ. कुलदीप आर्य (डी.ए.वी. कॉलेज, अमृतसर) एवं प्रो. विशाल भारद्वाज (संस्कृत विभाग, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर) रहे। अतिथि के रूप में पंजाब प्रांत संस्कृत भारती के प्रांत मंत्री श्री संजीव श्रीवास्तव उपस्थित थे। वेदव्रत जी ने कहा कि “पंजाब जिसे प्राचीन काल में सप्तसिंधु प्रदेश कहा जाता था, उसकी सांस्कृतिक जड़ों में संस्कृत गहराई से विद्यमान है। अतः हमें संस्कृत और पंजाब के संबंधों को सुदृढ़ करने के प्रयास करने चाहिए।”
तृतीय सत्र में भी कई विद्वानों ने संस्कृत और पंजाबी संबंधों पर अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए।
संगोष्ठी से पूर्व अनौपचारिक सत्र का आयोजन भी हुआ, जिसमें केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के अनौपचारिक संस्कृत शिक्षण केंद्र के अध्यापक श्री भगवती प्रसाद ने सरल माध्यम से संस्कृत सीखने की विधियाँ बताईं। विद्यार्थियों ने संस्कृत में परिचय देना सीखा और उसका प्रयोग भी किया।
इस अवसर पर गुरुकुल के अध्यापक जीवन जोत जी, जितेन्द्र जी, कमलदीप जी, पवन जोशी जी, संतोष जी तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित रहे।