मैं देख रहा हूं कि उन मुद्दों से समझौता हो रहा है। मेरा पहला काम बेअदबी के इंसाफ के लिए लड़ना है। आज मैं देखता हूं कि 6 साल पहले जिन्होंने बादलों को क्लीन चिट दी। छोटे-छोटे लड़कों पर अत्याचार किए। उन्हें इंसाफ का उत्तरदायित्व दिया गया है। यह देख मेरी रूह घबराती है। जिन्होंने ब्लैंकेट बेल दिलवाई, वो एडवोकेट जनरल है।।  क्या हम इन साधनों से अपने मुकाम तक पहुंचेंगे। मैं न हाईकमान को गुमराह कर सकता हूं और न होने दूंगा।

पंजाब में नशे से माताओं की कोख उजाड़ने वालों को जिन लोगों ने संरक्षण दिया, उन्हें पहरेदार नहीं बनाया जा सकता। मैं अडूंगा और लड़ूंगा। अगर सब कुछ जाता है तो जाए।  नैतिकता के साथ कोई समझौता नहीं करना है। तभी आवाज में बल आएगा। गुरु के इंसाफ के लिए लड़ने और पंजाब की बेहतरी के लिए किसी भी चीज की कुर्बानी देने को तैयार हूं। मैं अपने सिद्धांतों पर खड़ा रहूंगा। दागी नेताओं और अफसरों का सिस्टम तो तोड़ा गया था। फिर उन्हें लाकर वह सिस्टम खड़ा नहीं किया जा सकता। मैं इसका विरोध करता हूं।

17 साल का राजनीतिक सफर एक मकसद से किया है। पंजाब के लोगों की जिंदगी को बेहतर करना है। बदलाव लाना है। मुद्दों की राजनीति पर स्टैंड लेकर खड़े होना है। यही मेरा धर्म और फर्ज था। मेरी आज तक किसी से कोई निजी रंजिश नहीं रही। मैंने किसी से निजी लड़ाई नहीं लड़ी। मेरी लड़ाई मुद्दों की है। पंजाब पक्षीय एजेंडे की है। इस एजेंडे के साथ पंजाब का पक्ष पूरा करने के लिए मैं हक-सच की लड़ाई लड़ता रहा। इसमें कोई समझौता था ही नहीं। इसमें पद के कोई मायने नहीं थे।

उसूलों पर आंच आए तो टकराना जरूरी है

जिंदा हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है

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