पुरी : भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथयात्रा के लिए लाखों श्रद्धालु शनिवार देर रात से इंतजार कर रहे थे। रविवार शाम करीब 4 बजे भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को पहंडी विधान के साथ मंदिर से बाहर लाया गया। श्री मंदिर से गुंडीचा मंदिर तक साढ़े तीन किलोमीटर के रास्ते पर करीब 10 लाख लोगों ने जय जगन्नाथ के जयघोष के साथ महाप्रभु का स्वागत किया।

इस वर्ष, आषाढ़ के कृष्ण पक्ष में तिथियों के घटने के कारण रथयात्रा दो दिन चली। ऐसा संयोग आखिरी बार 1971 में बना था। इसके चलते भगवान के नवयौवन दर्शन, नेत्रोत्सव और गुंडीचा यात्रा को एक ही दिन में संपन्न करना पड़ा। रविवार सुबह मंगला आरती के बाद भगवान को रथ तक पहुंचने में 15 घंटे लगे। शाम करीब 5 बजे रथ आगे बढ़ा, लेकिन डेढ़ घंटे बाद ही भगवान जगन्नाथ का रथ 5 मीटर आगे बढ़ने के बाद रुक गया। कहते हैं, सुखद संयोग में जब भी भगवान प्रजा से मिलते हैं, तो रथ रास्ते में रुक जाता है।आज सुबह पूजा विधान के बाद रथ गुंडीचा मंदिर के लिए बढ़ेंगे। फिलहाल, महाप्रभु का रथ मंदिर के पास, बलभद्र जी का रथ मरीचिकोर्ट छक के पास, और सुभद्रा जी का रथ राजनअर के सामने रुका हुआ है। तीनों रथ मंदिर से 300 मीटर के दायरे में हैं। तब तक भगवान सड़क पर ही भक्तों को दर्शन देंगे और उनके पूजा विधान भी वहीं होंगे। रविवार शाम सूरज ढलते ही लाखों भक्तों के बीच तीनों रथ थम गए। सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ, बीच में बहन सुभद्रा और सबसे आगे भाई बलभद्र का रथ है। इस दृश्य में सबसे पीछे दाईं ओर जगन्नाथ मंदिर भी नजर आ रहा है, जो इस महायात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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