नई दिल्ली :अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को दिल्ली मेट्रो (DMRC) से कुल 4,500 करोड़ रुपए मिलेंगे। कंपनी ने दिल्ली मेट्रो पर करार तोड़ने का आरोप लगाकर उससे 2,800 करोड़ रुपए की टर्मिनेशन फीस मांगी थी। इस पर DMRC आर्बिट्रेशन प्रोसेस शुरू कर दिया, जिसके बाद मामला अदालतों में घूमता रहा। सुप्रीम कोर्ट ने आज कंपनी के दावे को सही ठहराया और DMRC को ब्याज और हर्जाना सहित वह रकम लौटाने का आदेश दिया।
मामला 2008 में रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर और DMRC के बीच हुए एक करार से जुड़ा है। दोनों के बीच दिल्ली एयरपोर्ट एक्सप्रेस को बिल्ड ऑपरेट ट्रांसफर (BOT) आधार पर बनाने की डील हुई थी। रिलायंस इंफ्रा ने दिल्ली मेट्रो पर करार तोड़ने का आरोप लगाया और उसको खारिज करते हुए टर्मिनेशन फीस मांगी। इस पर DMRC ने मामले में आर्बिट्रेशन शुरू करने के लिए उससे जुड़े क्लॉज का सहारा लिया।आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल ने मामले में 2017 में DMRC के खिलाफ आदेश जारी किया। ट्रिब्यूनल ने उसे 2,800 करोड़ रुपए के आर्बिट्रेशन अवॉर्ड के साथ उस रकम पर ब्याज और हर्जाना अदा करने के लिए कहा। ट्रिब्यूनल के आदेश को 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट के सिंगल जज की बेंच ने भी सही ठहराया और DMRC को मुआवजा देने के लिए कहा था।
DMRC से मिली रकम से कर्ज चुका सकेगी कंपनी
2019 में दिल्ली हाईकोर्ट की डिविजन बेंच ने DMRC को राहत देते हुए आर्बिट्रेशन अवॉर्ड को खारिज कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट के इस ऑर्डर को रिलायंस इंफ्रा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कंपनी को बड़ी राहत मिली है, क्योंकि DMRC से मिली रकम से वह कर्ज चुका सकेगी।
मामले की सुनवाई के दौरान कंपनी के वकीलों ने अदालत से यह बात कही थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को कंपनी के लोन को एनपीए देने से रोक दिया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कंपनी के लेंडरों पर लगी रोक हट गई है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश अनिल अंबानी के लिए अहम है क्योंकि उनकी टेलीकॉम कंपनियां दिवालिया करार दिए जाने की कगार पर हैं। वह खुद देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई के खिलाफ पर्सनल इन्सॉल्वेंसी केस लड़ रहे हैं।
किसी करार को लेकर विवाद होने पर पीड़ित पक्ष अदालत जाने के बजाय मध्यस्थता वाली व्यवस्था यानी ऑल्टरनेटिव डिस्प्यूट रिजॉल्यूशन (ADR) का सहारा लेता है। इसमें दोनों पक्ष आर्बिट्रेटर के सामने दलील रखते हैं, जो एक न्यूट्रल थर्ड पार्टी होता है और उसका आदेश अदालत के जरिए लागू कराया जा सकता है