
जालंधर:- मां बगलामुखी धाम गुलमोहर सिटी नज़दीक लमांपिंड चौंक जालंधर में सामुहिक निशुल्क दिव्य हवन यज्ञ का आयोजन मदिंर परिसर में किया गया।
सर्व प्रथम ब्राह्मणो द्वारा मुख्य यजमानो से विधिवत वैदिक रिती अनुसार पंचोपचार पूजन, षोडशोपचार पूजन ,नवग्रह पूजन उपरांत सपरिवार हवन-यज्ञ में आहुतियां डलवाई गई।
सिद्ध मां बगलामुखी धाम के प्रेरक प्रवक्ता नवजीत भारद्वाज जी ने दिव्य हवन यज्ञ पर उपस्थित मां भक्तों को गुरूपूर्णिमा की शुभकामनाएं देते हुए गुरु पूर्णिमा अर्थात समझाते हुए कहते है आषाढ़ मास की पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा कहते हैं इस दिन गुरु पूजा का विधान है। सद्गुरु के पूजन का पर्व गुरु की पूजा, गुरु का आदर किसी व्यक्ति की पूजा नहीं है अपितु गुरु के देह के अंदर जो विदेही आत्मा है, परब्रह्म परमात्मा है उसका आदर है, ज्ञान का आदर है, ज्ञान का पूजन है, ब्रह्मज्ञान का पूजन है।
नवजीत भारद्वाज जी कहते है कि गुरु को अपनी महत्ता के कारण ईश्वर से भी ऊँचा पद दिया गया है। शास्त्र वाक्य में ही गुरु को ही ईश्वर के विभिन्न रूपों- ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। गुरु को ब्रह्मा कहा गया क्योंकि वह शिष्य को है नव जन्म देता है। गुरु, विष्णु भी है क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है गुरु, साक्षात् महेश्वर भी है क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है।
नवजीत भारद्वाज जी गुरु महिमा का गुणगान करते हुए कबीरदास जी के दोहे से करते है कि
*कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय।*
*जनम जनम का मोरचा, पत्र में डारे धोय।।*
अर्थात्-कुबुद्धि रूपी कीचड़ से शिष्य भरा है, उसे धोने के लिए गुरु का ज्ञान जल है। जन्म-जन्मान्तरां की बुराई गुरुदेव क्षण ही में नष्ट कर देते हैं।
नवजीत भारद्वाज जी संत कबीरदास जी के दोहे का अनुसरण करते हुए कहते है कि *हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर* अर्थात् भगवान के रूठने पर तो गुरु की शरण रक्षा कर सकती है किंतु गुरू के रूठने पर कहीं भी शरण मिलना संभव नहीं है। जिसे ब्राह्मणों ने आचार्य, बौद्धों ने कल्याणमित्र, जैन तीर्थंकर और मुनि, नाथ तथा वैष्णव संतों और बौद्ध सिद्धों ने उपास्य सद्गुरु कहा है उस श्री गुरु से उपनिषद् की तीनों अग्नियाँ भी थर-थर काँपती हैं। त्रैलोक्यपति भी गुरु का गुणगान करते है। ऐसे गुरु के रूठने पर कहीं भी ठौर नहीं।
*गुरुब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:।*
*गुरु: साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नम:।।*
नवजीत भारद्वाज जी दोहे का अर्थात् समझाते हुए कहते है कि साधक की पात्रता और क्षमता के अनुसार गुरु का भी निर्धारण होता है। शास्त्रों के अनुसार साधक गुरु को नहीं चुनता बल्कि गुरु ही शिष्य को चुनता और उसका दायित्व उठाता है। वह सोये हुए को जगाता है, भटके हुए को राह दिखाता है। स्वार्थ में लगे हुए को परमार्थ के लिए प्रेरित करता है, विपत्ति में फंसे हुए का उद्धार करता है। निराशा के निरन्ध तमस में आशा की ज्योति जगाता है। वह मरणधर्मी संसार में अमरत्व का संदेश देता है। मानवीय मूल्य का बोध भी कराता है। वास्तव में गुरु उस अवस्था में पहुंची एक सिद्ध सत्ता है, जो अपने शिष्य को भी उसी मंजिल पर पहुंचाती है, जहां वह स्वयं स्थित है।
इस अवसर पर श्री कंठ जज, श्वेता भारद्वाज, निर्मल शर्मा, राकेश प्रभाकर,पूनम प्रभाकर ,मन्नत भारद्वाज, सरोज बाला, समीर कपूर, विक्की अग्रवाल, अमरेंद्र कुमार शर्मा, अमृतपाल, प्रदीप , दिनेश सेठ,सौरभ भाटिया,विवेक अग्रवाल, जानू थापर,दिनेश चौधरी,नरेश,कोमल,वेद प्रकाश, मुनीष मैहरा, जगदीश डोगरा, ऋषभ कालिया,रिंकू सैनी, कमलजीत,बलजिंदर सिंह,बावा खन्ना, धर्मपालसिंह, अमरजीत सिंह, उदय ,अजीत कुमार , नरेंद्र ,रोहित भाटिया,बावा जोशी,राकेश शर्मा, अमरेंद्र सिंह, विनोद खन्ना, नवीन , प्रदीप, सुधीर, सुमीत ,जोगिंदर सिंह, मनीष शर्मा, डॉ गुप्ता,सुक्खा अमनदीप ,परमजीत सिंह, दानिश, रितु, कुमार,गौरी केतन शर्मा,सौरभ ,शंकर, संदीप,रिंकू सैनी ,प्रदीप वर्मा, गोरव गोयल, मनी ,नरेश,अजय शर्मा,दीपक ,मनी राम, किशोर,प्रदीप , प्रवीण,राजू, गुलशन शर्मा,संजीव शर्मा, रोहित भाटिया,मुकेश अग्रवाल, अनुअग्रवाल, रजेश महाजन ,अमनदीप शर्मा, गुरप्रीत सिंह, विरेंद्र सिंह, अमन शर्मा, ऐडवोकेट शर्मा,वरुण, नितिश,रोमी, भोला शर्मा,दीलीप, लवली, लक्की, मोहित , विशाल , अश्विनी शर्मा , रवि भल्ला, भोला शर्मा, जगदीश, नवीन कुमार,जसविंदर सिंह, निर्मल,अनिल,सागर,दीपक,दसोंधा सिंह, प्रिंस कुमार, पप्पू ठाकुर, दीपक कुमार, नरेंद्र, सौरभ,दीपक कुमार, नरेश,दिक्षित, अनिल, कमल नैयर, अजय,बलदेव सिंह भारी संख्या में भक्तजन मौजूद थे।
हवन-यज्ञ उपरांत विशाल लंगर भंडारे का आयोजन मदिंर परिसर में किया गया।