नई दिल्ली,। बारह वर्ष से कम आयु की बच्ची से सामूहिक दुष्कर्म के दोषी को अनिवार्य रूप से मरते दम तक जेल की न्यूनतम सजा के प्रविधान पर सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। कोर्ट ने शुक्रवार को कानून में जीवन पर्यत जेल की न्यूनतम सजा के मुद्दे पर विचार का मन बनाते हुए अटार्नी जनरल, केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया है। सामूहिक दुष्कर्म के एक दोषी निखिल शिवाजी गोलाइत ने याचिका दाखिल कर आइपीसी की धारा 376 डीबी को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंधन बताते हुए चुनौती दी है। वह फिलहाल नागपुर की सेंट्रल जेल में बंद है।उल्लेखनीय है कि 2018 में आइपीसी में संशोधन के जरिये दुष्कर्म के मामलों में सजा को और सख्त किया गया था। उसी समय 12 वर्ष से कम उम्र की लड़की से सामूहिक दुष्कर्म में आइपीसी की धारा 376 डीबी में इस कड़ी सजा का प्राविधान किया गया था। शुक्रवार को न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने मामले को महत्वपूर्ण मानते हुए नोटिस जारी किया। इससे पहले याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील गौरव अग्रवाल ने याचिका पर बहस करते हुए कहा कि उन्होंने 12 साल से कम उम्र की लड़की से सामूहिक दुष्कर्म के दोषी को न्यूनतम जीवन पर्यत कारावास की सजा को चुनौती दी है। अग्रवाल ने कहा कि यह धारा संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में मिले अधिकारों का हनन करती है।

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