दिल्ली  : गुजरात के बिलकिस बानो गैंगरेप के दोषियों की रिहाई का मामला लगातार सुर्खियों में बना हुआ है. देशभर में इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं. इस बीच सुप्रीम कोर्ट में भी बिलकिस बानो केस पहुंच गया है.जिस पर सुनवाई के लिए कोर्ट तैयार हो गया है. दरअसल, बिलकिस बानो केस के दोषियों की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. मंगलवार को CJI की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच के समक्ष बिलकिस बानो मामले उठाया गया. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अधिवक्ता अपर्णा भेट ने कोर्ट से मामले की सुनवाई जल्द करने आग्रह किया. जिस पर कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया है.जानकारी के मुताबिक CJI की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष अधिलक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि हमने रिहाई को चुनौती दी है. यह रिहाई का मामला है. 14 लोग मार दिए गए, एक गर्भवती महिला के साथ बलात्कार किया गया.वहीं अधिवक्ता भट्ट ने कोर्ट से मामले की सुनवाई कल यानी बुधवार को करने का आग्रह किया. जिस पर बेंच ने याचिका को स्वीकार कर लिया है.

27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के कोच को जला दिया गया था. इस ट्रेन से कारसेवक अयोध्या से लौट रहे थे. इससे कोच में बैठे 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी. इसके बाद गुजरात में दंगे भड़क गए थे. दंगों की आग से बचने के लिए बिलकिस बानो अपनी बच्ची और परिवार के साथ गांव छोड़कर चली गई थीं. बिलकिस बानो और उनका परिवार जहां छिपा था, वहां 3 मार्च 2002 को 20-30 लोगों की भीड़ ने तलवार और लाठियों से हमला कर दिया. भीड़ ने बिलकिस बानो के साथ बलात्कार किया. उस समय बिलकिस 5 महीने की गर्भवती थीं. इतना ही नहीं, उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या भी कर दी थी. बाकी 6 सदस्य वहां से भाग गए थे.बता दें कि मामले में 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 11 आरोपियों को दोषी पाया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा. इन दोषियों ने 18 साल से ज्यादा सजा काट ली थी, जिसके बाद राधेश्याम शाही ने धारा 432 और 433 के तहत सजा को माफ करने के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. HC ने ये कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि उनकी माफी के बारे में फैसला करने वाली ‘उपयुक्त सरकार’ महाराष्ट्र है, न कि गुजरात. राधेश्याम शाही ने तब सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को 9 जुलाई 1992 की माफी नीति के अनुसार समय से पहले रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया था

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