
पंजाब पर क़र्ज़ का बोझ
1. मार्च 2012, – ₹ 82,000 करोड़
2. मार्च 2017, – ₹ 1,82,000 करोड़
3. मार्च 2022, – ₹ 2,82,000 करोड़
4. मार्च 2026, –
₹ 4,60,000 – 4,80,000 /- करोड़
अकाली कांग्रेस के दौरान क़र्ज़ प्रति वर्ष चढ़ा ₹ 20000/- करोड़
आप सरकार के सता दौरान
वही क़र्ज़ ₹ 30000 से ₹40000/- करोड़ बड़ा।
आज पंजाब एक खतरनाक वित्तीय संकट के मुहाने पर खड़ा है। राज्य पर 4 लाख करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज मार्च आते आते चढ़ चुका होगा जो हर नागरिक पर औसतन एक लाख रुपये से अधिक का बोझ डालेगा । यह केवल आर्थिक बदहाली नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों से किया गया एक क्रूर धोखा है।
📉 आंकड़े खुद सच बयां कर रहे हैं
2017 में जब कांग्रेस सत्ता में आई, तब पंजाब का कर्ज़ लगभग ₹1.82 लाख करोड़ था। पाँच वर्षों में यह ₹2.83 लाख करोड़ तक पहुँच गया। लेकिन आप सरकार के केवल तीन वर्षों में यह कर्ज बढ़कर ₹4 लाख करोड़ को पार कर जाएगा — यानी ₹1.2 लाख करोड़ का अतिरिक्त बोझ और बदले में कोई ठोस विकास कार्य नहीं।
पैसा कहाँ जा रहा है?
सरकार कहती है कि वह “मुफ्त बिजली” दे रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि यह मुफ्त योजनाएं भारी उधारी के दम पर चलाई जा रही हैं। हर दिन नया कर्ज़ लिया जा रहा है सिर्फ़ पुराने कर्ज़ का ब्याज चुकाने और घोषणाओं को निभाने के लिए।
उधर, राजस्व अर्जित करने वाले विभाग — जैसे कि एक्साइज, माइनिंग, ट्रांसपोर्ट और जीएसटी — भ्रष्टाचार और घोटालों से जर्जर हो चुके हैं। करोड़ों रुपये के विज्ञापन देशभर में चलाए जा रहे हैं, लेकिन किसानों, कर्मचारियों, विद्यार्थियों और गरीबों को उनका हक नहीं मिल रहा।
🧾 सारे वित्तीय संकेत लाल निशान में
• पंजाब का कर्ज-से-जीडीपी अनुपात 48% से ऊपर जा चुका है, जो राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक है।
• राजस्व घाटा लगातार बढ़ रहा है, यानी वेतन और ब्याज चुकाने के लिए भी कर्ज/ उधारी ली जा रही है।
• हर साल ₹43,000 करोड़ रुपये सिर्फ़ ब्याज चुकाने में खर्च हो रहे हैं।
यह एक debt trap (कर्ज जाल) है — पुराने कर्ज को चुकाने के लिए नया कर्ज, और फिर उसका भी ब्याज।
चेतावनी को अनसुना किया गया
कैग (CAG) और वित्त आयोग दोनों ने समय-समय पर चेतावनी दी, लेकिन आम आदमी पार्टी ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया। चुनाव से पहले भ्रष्टाचार खत्म करने का वादा करने वाली आप सरकार अब स्वयं भ्रष्टाचार और अव्यवस्था की मिसाल बन चुकी है।
आम जनता पर असर
• SC छात्रों की छात्रवृत्तियाँ रुकी पड़ी हैं।
• किसानों को गेहूं और धान का भुगतान समय पर नहीं हो रहा।
• गांवों के विकास कार्य ठप हैं।
• सरकारी स्कूलों और अस्पतालों में स्टाफ की भारी कमी है।
• सरकारी कर्मचारी, आंगनवाड़ी वर्कर और सफाई कर्मी वेतन के लिए धरने पर हैं।
लेकिन सरकार झूठा प्रचार कर रही है कि पंजाब “मॉडल स्टेट” बन गया है!
क्या किया जाना चाहिए?
1. पंजाब की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र (White Paper) विधानसभा में लाया जाए।
2. पिछले 10 वर्षों के कर्ज़ों की न्यायिक ऑडिट कराई जाए।
3. घाटे में चल रहे बोर्ड और निगमों को या तो बंद किया जाए या पुनर्गठित किया जाए।
4. राजस्व विभागों (एक्साइज, माइनिंग, ट्रांसपोर्ट) की स्वतंत्र निगरानी हो।
5. मुख्यमंत्री और मंत्रीगण अपनी तनख्वाह का 50% त्याग करें जब तक वित्तीय अनुशासन बहाल न हो।
अब समय आ गया है कि पंजाब की जनता सरकार से पूछे — “पैसा कहां गया?” कर्ज लेकर मुफ्त योजनाएं बांटने से राज्य नहीं चलता, उसकी आत्मा को गिरवी रख दी जाती है।
पंजाब का अर्थतंत्र केवल आंकड़ों की बाज़ीगरी नहीं, बल्कि उन गरीबों, किसानों, युवाओं और दलितों की आशाओं की नींव है। इस नींव को डगमगाने से रोकना हम सबकी जिम्मेदारी है।