जालंधर में चंडीगढ़ ललित कला अकादमी द्वारा राजेश्वरी कला संगम और डॉ. सत्य पॉल आर्ट गैलरी, विरसा विहार के संयुक्त सहयोग से शहर में पहली बार आयोजित भव्य वार्षिक कला प्रदर्शनी, एक ऐतिहासिक सांस्कृतिक उपलब्धि का गवाह बनी।
इस प्रदर्शनी में कलाकृतियों की एक असाधारण श्रृंखला प्रस्तुत की गई जो समाज की आत्मा को प्रतिबिंबित करती है और रचनात्मक भावना का उत्सव मनाती है। इस अवसर पर, प्रतिष्ठित कला समीक्षक और कला पारखी, प्रो. (डॉ.) सरोज रानी, पूर्व हेड एवं चेयरमैन, ललित कला विभाग, पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला, ने अपनी अंतर्दृष्टिपूर्ण समीक्षा प्रस्तुत की
‘रंगों की खोज’
(डॉ. सत्य पॉल आर्ट गैलरी, विरसा विहार, जालंधर में प्रदर्शनी)
कलाकार समाज का दर्पण होते हैं। सच्चे कलाकारों को तीसरी आँख, यानी अग्नि, प्राप्त होती है। हर एक कलाकार तर्क और यथार्थ का दर्शन रखता है। वे खुद को नवीनीकृत करने के लिए अपनी जगह खुद बनाते हैं। वे अपने भीतर का दीया जलाते हैं और अपने सच्चे स्वरूप की खोज के लिए पंचतत्वों को जलाते हैं। वे उस अज्ञात ऊर्जा को समझने के लिए हमेशा दिव्य प्रेम से ओतप्रोत रहते हैं जो उन्हें ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने में मदद करती है। हर एक के पास प्राकृतिक सामग्री से बनी अपनी दूरबीन होती है। वंदना भारती कौशिक, एक साधारण पीले घर को वसंत के रंग में चित्रित करती हैं। इसमें दो खिड़कियाँ हैं—एक पारदर्शी शीशे वाली और दूसरी खुली—जो घर की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का प्रतीक हैं। आधुनिक परिधानों में एक युवती, जींस और टॉप पहने हुए, घर की नीची दीवार पर बैठी हुई, अपने फ़ोन में व्यस्त है। आकाश में उड़ता चील स्वतंत्रता का प्रतीक है। उनकी पेंटिंग्स में जुनून, अकेलापन और उदासी जैसे गहरे समकालीन विषय प्रतिबिंबित होते हैं। युवा कलाकार गुरप्रीत पंजाब के समृद्ध अतीत की पड़ताल करते हैं। वह प्रजापति द्वारा बनाए गए मिट्टी के दीये के प्राकृतिक प्रकाश से शुरुआत करते हैं, जो अंधकार के बीच आशा का प्रतीक है। सुगंधित गुलाबों से घिरी , दिया थामे सुंदर सी बेटी , अंधकार को दूर भगाती है—जो कि अवसाद के बीच सुंदरता का प्रतीक है, प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाती है। सनप्रीत कौर का काम सरल है व जटिल है। इसमें एक अधेड़ उम्र की महिला साड़ी पहने हुए है, जिसके काले बाल एक जूड़े में बंधे हैं और उस पर एक लाल फूल सजा है, जो अमृता शेरगिल की कृतियों में सूरजमुखी के फूल की याद दिलाता है। उसकी तीखी निगाहें फ्रेम के पार झाँकती हैं, जो कि ध्यान से उसके भीतर की खोज करती हैं। परवेश, एक विपुल कलाकार, अनुष्ठानों और समारोहों के सार को पकड़ने और छिपे अर्थों का विश्लेषण करने में माहिर हैं। उनकी मूर्तियाँ जीवन की वास्तविकताओं,यद्यपि अपरिष्कृत और खुरदरी,को उजागर करती हैं जो कि अस्तित्व और आश्वासन के पाठ के रूप में काम करती हैं। पूनम राणा सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, स्वास्थ्य समस्याओं, मानसिक विकृतियों और इच्छाओं को उजागर करती हैं। वह आम लोगों—मजदूरों, रिक्शा चालकों—के दैनिक जीवन को उनकी सामाजिक और जातिगत पहचान को आसानी से चित्रित करती हैं। पंचम गौड़ की शानदार टैक्सी, जो काले रंग से रंगी है और जिसकी छत पीली है, पर बारीक नक्काशी की गई है। खामोश चालक वाहन को चलाता है, जबकि उत्साहित महिला यात्री बाहर देखती है। उसके सपने विभिन्न मंदिरों के देवी-देवताओं की छवियों से भरे हैं, जो उसके उत्साह का प्रतीक हैं। एक अन्य कृति में अर्थशास्त्र में वर्णित एक बिल्ली है, जो शुभता और सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतीक है, जिसे परिवार माना जाता है, जिसे ‘मासी’ के नाम से जाना जाता है। वह घर की मालकिन के पीछे तब तक चलती है जब तक उसे दूध नहीं मिल जाता। शिवम गुलाटी की आधुनिक, गर्वित बिल्ली की आंखें प्रभावशाली हैं। रीना भटनागर अपनी आत्मा को संतुष्ट करने के लिए हृदयस्पर्शी धागे बुनती हैं। राहुल धीमान गंदगी और प्रदूषण से होने वाली मानसिक और शारीरिक बीमारियों से चिंतित हैं। वह भाग्य और जीवन की दिशा पर प्रकाश डालता है। रतिका वर्मा मानती हैं कि आंखें खिड़कियाँ हैं – उनकी निगाहें छिपी हुई भावनाओं और दृष्टिकोणों को प्रकट करती हैं, जिनमे कुछ उदासीन, अन्य स्थिर और तीव्र हैं।महिला मूर्तिकार गुरमीत गोल्डी, लकड़ियों और पत्थरों में जान फूंकती हैं। उनकी आकृतियाँ स्वयं और सामाजिक मुद्दों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये मूर्तियाँ जीवंत हैं, दर्शकों को जुड़ने और बदलते रुझानों पर चिंतन करने के लिए आमंत्रित करती हैं। अभिजीत दास जैसे कुछ कलाकार सामाजिक भ्रष्टाचार से त्रस्त हैं। रंजन मलिक अधूरी इच्छाओं का बोझ ढोते हुए अपनी पहचान खोजने का प्रयास करते हैं। उनकी कृतियाँ आज की दुनिया की सच्चाइयों को उजागर करती हैं। वे जीवन के अनदेखे पहलुओं की खोज करती हैं, सूर्य और चंद्रमा के प्रकाश की लालसा रखती हैं लेकिन तूफानों के प्रति सचेत रहती हैं। इस तरह की प्रदर्शनियाँ प्रगति के लिए बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। डैफी बरार की पेंटिंग्स पंजाबी विरासत को दर्शाती हैं—फुलकारी पर साधारण मोर उत्साह जगाते हैं। दिव्य प्रकाश तक पहुँचना और आत्म-मुक्ति प्राप्त करना जीवन का सार है। सुखजीत कौर अपनी आत्मा को शुद्ध करते हुए अमृत में डूब जाती हैं। ऐसी प्रदर्शनियाँ दुर्लभ हैं और ऐतिहासिक ग्रंथ बन सकती हैं। सुनने के लिए दीवारों के बिना भी, मनुष्यों को अकेला देखना दुखद है। मनुष्यों और जानवरों के बीच का बंधन सुंदर है। मूक होते हुए भी, जानवर सच्ची भावनाओं को व्यक्त करते हैं। कलाकार बीज के विकास का बोध रखते हुए, अज्ञात की महिमा को बढ़ाते हैं। उनके डूडल और विलोपन गहराई तक पहुँचने की इच्छा की अभिव्यक्ति हैं। ये प्रदर्शनियाँ दर्शकों को सहज रूप से आकर्षित करती हैं। उनकी कृतियाँ केवल सजावट या पूजा की वस्तुएँ नहीं हैं, बल्कि मानवता के प्रति चिंतन और चेतावनी हैं। ऐसी कला का प्रदर्शन सत् चित् आनंद का मार्ग प्रशस्त करता है। इसका श्रेय डॉ. सुचरिता जी, डायरेक्टर एपीजे एजुकेशन, को जाता है, जिन्होंने इस सार्थक प्रदर्शनी के आयोजन के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया।