
जालंधर:- मां बगलामुखी धाम गुलमोहर सिटी नज़दीक लमांपिंड चौंक जालंधर में सामुहिक निशुल्क दिव्य हवन यज्ञ का आयोजन मदिंर परिसर में किया गया।
सर्व प्रथम ब्राह्मणो द्वारा मुख्य यजमानो से विधिवत वैदिक रिती अनुसार पंचोपचार पूजन, षोडशोपचार पूजन ,नवग्रह पूजन उपरांत सपरिवार हवन-यज्ञ में आहुतियां डलवाई गई।
सिद्ध मां बगलामुखी धाम के प्रेरक प्रवक्ता नवजीत भारद्वाज जी ने दिव्य हवन यज्ञ पर उपस्थित मां भक्तों को शारदीय नवरात्रि के आध्यात्मिक मूल मंत्र को समझाते हुए कहते है कि शक्ति और साधना का महापर्व शारदीय नवरात्रि पूरे देश में आस्था और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। यह पर्व केवल व्रत-उपवास और उत्सवों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह नौ दिनों की एक गहन आध्यात्मिक यात्रा है जो हमें आत्मशुद्धि और अहंकार के त्याग का पाठ सिखाती है।
नवरात्रि का हर एक अनुष्ठान, पहले दिन की घटस्थापना से लेकर अंतिम दिन के विसर्जन तक, प्रतीकात्मक रूप से हमारे भीतर के ‘‘मैं’’ को मिटाकर उस परम शक्ति के प्रति समर्पण का भाव जगाने के लिए बनाया गया है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने अहंकार, क्रोध और इच्छाओं को त्याग कर देवी की कृपा के पात्र बन सकते हैं और एक संतुलित जीवन जी सकते हैं।
नवरात्रि का आरंभ घटस्थापना से होता है, जो अहंकार के त्याग का पहला कदम है। जब हम एक मिट्टी के कलश में पवित्र जल भरकर देवी का आह्वान करते हैं, तो हम स्वीकार करते हैं कि हमारा शरीर और घर केवल उस दिव्य ऊर्जा का पात्र है। हम अपने ‘‘मैं’’ और ‘‘मेरे’’ के भाव को त्यागकर देवी को अपने जीवन का केंद्र बनाते हैं और खुद को केवल एक माध्यम समझते हैं।
नौ दिनों का व्रत केवल भोजन का त्याग नहीं, बल्कि यह अहंकार के सबसे बड़े औजार हैं, यानी हमारी इंद्रियों पर नियंत्रण की साधना है। सात्विक भोजन और अनुशासित जीवनशैली अपनाकर हम अपनी इच्छाओं और वासनाओं को नियंत्रित करते हैं। जब हम देवी के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करते हैं, तो हम अपनी सीमाओं को स्वीकार करते हैं और उनकी अनंत शक्ति के सामने नतमस्तक होते हैं, जिससे हमारा अहंकार स्वत: ही कम हो जाता है।
नवरात्रि में कन्या पूजन अहंकार को पूरी तरह से विसर्जित करने का सबसे सुंदर घटना है। इस परंपरा में हम छोटी-छोटी कन्याओं में देवी का साक्षात स्वरूप देखकर उनके चरण धोते हैं और उन्हें भोजन कराकर उनका आशीर्वाद लेते हैं। एक ज्ञानी और अनुभवी व्यक्ति का छोटी बालिकाओं के आगे झुकना, अहंकार के पूर्ण विनाश और पवित्रता की सर्वोच्च सत्ता को स्वीकार करने का प्रतीक है।
नौ दिनों तक जिस मूर्ति की हमने पूरी श्रद्धा से पूजा की, उसे अंतिम दिन जल में विसर्जित कर देना वैराग्य और अनासक्ति का सबसे बड़ा पाठ है। अहंकार हर सुंदर वस्तु और अनुभव को हमेशा के लिए अपना बनाना चाहता है। लेकिन विसर्जन हमें सिखाता है कि इस संसार में हर स्वरूप नश्वर है और उसे अंत में उसी निराकार ब्रह्म में विलीन हो जाना है। यह हमें फल की चिंता किए बिना कर्म करने की प्रेरणा देता है।
इस अवसर पर राकेश प्रभाकर,पूनम प्रभाकर ,सरोज बाला, समीर कपूर, विक्की अग्रवाल, अमरेंद्र कुमार शर्मा, अमृतपाल, प्रदीप , दिनेश सेठ,सौरभ भाटिया,विवेक अग्रवाल, जानू थापर,दिनेश चौधरी,नरेश,कोमल,वेद प्रकाश, मुनीष मैहरा, जगदीश डोगरा, ऋषभ कालिया,रिंकू सैनी, कमलजीत,बलजिंदर सिंह,बावा खन्ना, धर्मपालसिंह, अमरजीत सिंह, उदय ,अजीत कुमार , नरेंद्र ,रोहित भाटिया,बावा जोशी,राकेश शर्मा, अमरेंद्र सिंह, विनोद खन्ना, नवीन , प्रदीप, सुधीर, सुमीत ,जोगिंदर सिंह, मनीष शर्मा, डॉ गुप्ता,सुक्खा अमनदीप , अवतार सैनी, परमजीत सिंह, दानिश, रितु, कुमार,गौरी केतन शर्मा,सौरभ ,शंकर, संदीप,रिंकू,प्रदीप वर्मा, गोरव गोयल, मनी ,नरेश,अजय शर्मा,दीपक , किशोर,प्रदीप , प्रवीण,राजू, गुलशन शर्मा,संजीव शर्मा, रोहित भाटिया,मुकेश, रजेश महाजन ,अमनदीप शर्मा, गुरप्रीत सिंह, विरेंद्र सिंह, अमन शर्मा, ऐडवोकेट शर्मा,वरुण, नितिश,रोमी, भोला शर्मा,दीलीप, लवली, लक्की, मोहित , विशाल , अश्विनी शर्मा , रवि भल्ला, भोला शर्मा, जगदीश, नवीन कुमार, निर्मल,अनिल,सागर,दीपक,दसोंधा सिंह, प्रिंस कुमार, पप्पू ठाकुर, दीपक कुमार, नरेंद्र, सौरभ,दीपक कुमार, नरेश,दिक्षित, अनिल, कमल नैयर, अजय,बलदेव सिंह भारी संख्या में भक्तजन मौजूद थे।