डी.ए.ਵੀ. यूनिवर्सिटी, जालंधर में “प्रेस की आज़ादी बनाम जिम्मेदार पत्रकारिता: संतुलन की खोज” विषय पर पैनल चर्चा आयोजित की गई।
कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. गितिका नागरथ, डीन, CBME और ह्यूमैनिटीज, के स्वागत भाषण से हुई। उन्होंने सभी मेहमानों का स्वागत किया और विषय की महत्ता बताते हुए कहा कि तेज़ी से फैलती जानकारी के इस दौर में प्रेस की आज़ादी और पत्रकारिता की जिम्मेदारी दोनों पर चर्चा बहुत जरूरी है।
प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार, वाइस चांसलर, ने कहा, “प्रेस की आज़ादी लोकतंत्र का मजबूत स्तंभ है, लेकिन यह जिम्मेदारी के बिना टिक नहीं सकती। सच, निष्पक्षता और जिम्मेदारी पत्रकार के मुख्य मूल्य हैं, खासकर आज जब खबरें पलभर में फैल जाती हैं। अगर आज़ादी जिम्मेदारी से अलग हो जाए तो मीडिया जनता का विश्वास खो सकती है। छात्रों को नैतिक पत्रकारिता के ज़रिए लोकतंत्र को मजबूत करना चाहिए।”
इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए प्रो. (डॉ.) एस.के. अरोड़ा, रजिस्ट्रार, ने डिजिटल समय की चुनौतियों पर बात की। उन्होंने कहा, “आज खबरों की गति बहुत तेज़ है, इसलिए विश्वसनीयता पहले से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। तथ्य-जांच, संतुलन और नैतिक सावधानी पत्रकारिता की बुनियादी ज़रूरत हैं। भविष्य के पत्रकारों को सनसनी से बचना चाहिए और पारदर्शिता अपनानी चाहिए। मीडिया का उद्देश्य जानकारी देना है, न कि भ्रम फैलाना।”
विशिष्ट पैनल में शामिल थे:
प्रो. (डॉ.) संजीव भानावत, सेवानिवृत्त प्रोफेसर और पूर्व प्रमुख, सेंटर फॉर मास कम्युनिकेशन, यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान;
प्रो. कमलेश सिंह दुग्गल, सेवानिवृत्त प्रोफेसर और पूर्व प्रमुख, विभाग—जर्नलिज़्म एवं मास कम्युनिकेशन, जी.एन.डी.यू. क्षेत्रीय कैंपस, जालंधर;
प्रो. दलीप कुमार, रीजनल डायरेक्टर और कोर्स कोऑर्डिनेटर (इंग्लिश जर्नलिज़्म), आई.आई.एम.सी., जम्मू;
प्रो. रूबल कनोइज़िया, एसोसिएट प्रोफेसर और हेड, विभाग—मास कम्युनिकेशन एवं मीडिया स्टडीज़, केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब;
श्री अनिल गुप्ता, मीडिया प्रोफेशनल एवं अकादमिक, नई दिल्ली;
श्री राजीव भास्कर, वरिष्ठ मीडिया प्रोफेशनल, जालंधर;
और सुजाता प्रशार, मीडिया प्रोफेशनल, नई दिल्ली।
पैनल ने पत्रकारिता में “आज़ादी” के बदलते अर्थों पर विचार साझा किए। वक्ताओं ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में मीडिया की भूमिका को याद किया और यह चिंता जताई कि बढ़ते कॉर्पोरेट प्रभाव और मीडिया स्वामित्व ने उसकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता को प्रभावित किया है।
चर्चा में यह भी बताया गया कि बढ़ते मीडिया प्लेटफॉर्म गलत जानकारी फैलने का खतरा बढ़ा रहे हैं और सीमित संसाधन अच्छी पत्रकारिता को प्रभावित कर रहे हैं। मीडिया का एक हिस्सा “वॉचडॉग” से “लैपडॉग” बनता जा रहा है, जिससे सत्ता को चुनौती देने की क्षमता कम हो रही है।

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