नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लेने के बाद भारत में अमेरिका के राजदूत केनेथ आई जस्टर समेत 16 देशों के राजनयिक मौजूदा स्थिति का मुआयना करने गुरुवार को श्रीनगर पहुंचे। अधिकारियों ने बताया कि दिल्ली में रहने वाले ये राजनयिक विशेष विमान में श्रीनगर के तकनीकी हवाई-अड्डे पर पहुंचे, जहां नवगठित केंद्र शाषित प्रदेश के शीर्ष अधिकारियों ने उनका स्वागत किया। वे आज दिन में नवगठित केन्द्र शासित प्रदेश की शीतकालीन राजधानी जम्मू जाएंगे और रात में वहीं ठहरेंगे। उन्होंने बताया कि ये राजनयिक उपराज्यपाल जी. सी. मुर्मू और नागरिक समूह के सदस्यों के साथ मुलाकात करेंगे। राजनयिकों के इस प्रतिनिधिमंडल में अमेरिका के अलावा बांग्लादेश, वियतनाम, नोर्वे,मालद्वीप, दक्षिण कोरिया, मोरक्को और नाइजीरिया के राजनयिक भी शामिल हैं।
घाटी पहुंते तमाम देशों के राजनायिकों ने यहां आकर राजनीतिक दलों के सदस्यों से बातचीत करने का सिलसिला शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि इस मुलाकात के बाद घाटी में तीसरे मोर्चे का गठन हो सकता है। इस चर्चा के दौरान नौकरियों में जम्मू-कश्मीर के लोगों को आरक्षण और राज्य की बहाली के मुद्दों को भी उठाया गया है लेकिन आर्टिकल 370 पर किसी तरह की कोई बातचीत नहीं हुई। इन राजनायिकों का प्रतिनिधित्व पूर्व विधायकों और तमाम राजीनितक लीडरों सहति पीडीपी पार्टी के वरिष्ठ नेता सैयाद मोहम्मद अल्ताफ बुखारी ने किया।
सैयद अलताफ बुखारी के नेतृत्व में आठ पूर्व विधायकों ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के कार्यालय से संवाद स्थापित कर पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने समेत कई मांगें रखीं। यह मुख्यधारा के नेताओं का पहला समूह है जिसने उपराज्यपाल कार्यालय से संवाद स्थापित किया है। प्रतिनिधिमंडल ने उपराज्यपाल जी. सी. मुर्मू से मुलाकात की और 15 बिंदुओं वाला ज्ञापन सौंपा जिसमें जमीन और नौकरियों में लोगों के अधिकारों को सुरक्षित करना, हिरासत में लिए गए लोगों को रिहा करना और युवकों पर दर्ज मामले वापस लेना आदि शामिल हैं।
बुखारी ने बताया, ‘‘हमने मुर्मू साहब से मुलाकात की और अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर से संबंधित चिंताओं से उन्हें अवगत कराया। हमने निजी तौर पर मुलाकात की।’’ वह पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार में वित्त मंत्री थे। नेताओं ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोगों का विश्वास जीतने के लिए केंद्र को कश्मीर के प्रति अपनी दशकों पुरानी नीति पर फिर से विचार करना होगा और लोगों की आशंकाओं का उचित एवं मानवीय तरीके से समाधान करना होगा। उन्होंने कहा कि केवल सुरक्षा उपयों पर निर्भर रहना और लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं को कानून-व्यवस्था के दृष्टिकोण से देखने से केवल पुराने नतीजे ही होंगे।