दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, नूरमहल आश्रम में सेवादारों के लिए सत्संग समागम एवं भंडारे का आयोजन किया गया। मंच सञ्चालन में साध्वी मनस्विनी भारती जी ने बताया कि एक सच्चा सेवक गुरु की सेवा के लिए हनुमंत की भांति सदैव आतुर रहता है। एक होता है सेवा के लिए तैयार रहना, दूसरा होता है आतुर रहना। जो सेवक तैयार रहता है, वह इंतज़ार करता है। सेवा हाथ में आती है तो उसे अंजाम देता है। पर जो सेवक आतुर है, वो सेवा के बगैर छटपटा उठता है। इसलिए जहाँ सेवा होती है वहां स्वयं पहुँच जाता है। आगे स्वामी विश्वानंद जी ने बताया कि गुरु सभी को श्रेष्ठ दायित्व सौंपता है, पर प्रसन्न उन्हीं से होता है, जो उसे पूर्ण करते हैं।
सत्संग समागम में स्वामी चिन्मयानन्द जी ने बताया कि सही मायने में शिष्य गुरु की नहीं, अपितु गुरु शिष्य की सेवा के लिए ततपर रहता है। क्यूंकि एक शिष्य तो समय की सीमा में बंध कर ही सेवा कर सकता है। लेकिन इसके विपरीत गुरु हर उस पल में सेवक के समक्ष प्रगट हो कर उसका साथी बनता है जहां उसे जरुरत होती है। स्वामी जी ने बताया की गुरु शिष्य की जरा सी सेवा का आधार लेकर उस पर अनंत कृपा की वर्षा कर देतें है। उसके अंतस में समाए कुविचारों, विकारों व वासनाओं को जड़मूल से नष्ट कर देते हैं।

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