दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से चल रही श्रीमद्भागवत साप्ताहिक कथा ज्ञानयज्ञ के द्वितीय दिवस की सभा में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी ने बहुत ही सुसज्जित ढंग से भगवान श्रीकृष्ण जी के अलौकिक एवं महान व्यक्तित्व के पहलुओं से अवगत करवाया। उन्होने वराह अवतार कथा में बताया कि हिरण्याक्ष ने धरती को रसातल में डुबो दिया। जिस का भाव कि धरती के संसाधनों का दोहन करना। हमारे वेदों में धरती को विष्णुरूपा माना गया है। धरती जो हमारा भार वहन करती हैं। धन-धान्य से हमारा भरण पोषण करती है। इसलिये धरती को मां कहा गया है। कुदरत को भी मां का दर्जा दिया गया है। आज प्रकृति का दोहन कर रहा है मानव । इसलिए प्रकृति संहारक चंडिका का रूप धारण कर चुकी है। अन्न, धान्य से हम सब को परोसने वाली प्रकृति माँ रौद्ररूपा स्वरूप धारण कर चुकी है। कहीं ज्वालामुखी फटतें हैं, कहीं चक्रवात, सुनामी, भुखमरी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। कारण यही है हमने प्रकृति के संतुलन को खराब किया है। प्रकृति का यह अटल नियम है कि जैसी क्रिया वैसी प्रतिक्रिया होती है। यदि क्रिया सकारात्मक है तो प्रतिक्रिया भी अच्छी ही मिलेगी। यदि क्रिया गलत है तो परिणाम भी हानिकारक होगा। जब मनुष्य अपनी आत्मा से जाग्रत होता है तो प्रकृति का दोहन नहीं उसका पूजन करता है। कभी समय था इस धरती के ऊपर शांति गीत गुंजायमान हुआ करते थे। वनस्पति शांत हो, अंतरिक्ष शांत हो, औषधियां शांत हो, धरती शांत हो और धरती पर रहने वाला मानव भी शांत हो। जब मानव का मन संतुलित होगा तो यह प्रकृति अपने आप ही संतुलन में चलेगी। इसीलिए आज आवश्यकता है उस ब्रह्मज्ञान की जिसके माध्यम से मानव का मन शांत हो फिर सारे ब्रह्मांड को वह शांत रख सकता है।
12. श्रीमती. नीलम जैन
13. श्री. कुलभूषण जैन
14. श्री. विनोद जैन – व्यवसायी
15. श्री. सुतीक्षण सैमोल एडवोकेट। 16. श्री. पवन कुमार। श्री मैंडी खन्ना बगीची
17. श्री. चंदेन नागराल
18. एस. गुरिंदर सिंह
19. श्री. दर्शन भल्ला
20. पांडे
दास. पी
21. अरुण थेकेंस पीएल
22. भूपिंदे आह न्यूज 14
23. साहिल वरमानी