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आज भी देश कोरोना महामारी से पूरी तरह से उभर नहीं पाया है. ऐसे में उत्तर प्रदेश के मथुरा में विशेष रूप से कोह गांव में मिस्ट्री फीवर के कई मामले सामने आए हैं.आगरा के डिविजनल कमिश्नर अमित गुप्ता ने बताया कि इस बुखार के कारण कुछ लोगों की मौत भी हो चुकी है. इन मौतों के लिए स्क्रब टाइफस को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. ये डेंगू की तरह एक वेक्टर बॉर्न बीमारी है. स्क्रब टाइफस किसी वायरस के कारण नहीं बल्कि बैक्टीरिया के कारण होता है.एक्सपर्ट्स और डॉक्टर्स के अनुसार, स्क्रब टाइफ्स को शर्ब टाइफ्स भी कहते हैं. ये ओरिएंटिया त्सुत्सुगामुशी नामक बैक्टीरिया से होता है. इसे बुश टाइफस के नाम से भी जाना जाता है. ये संक्रमित चिगर्स (लार्वा माइट्स) के काटने से लोगों में फैलता है.राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल (एनएचपी) के अनुसार, स्क्रब टाइफस भारत के कई हिस्सों में फैल चुका है. इसमें जम्मू से लेकर नागालैंड तक उप-हिमालयी बेल्ट भी शामिल हैं. 2003 से 2004 और 2007 में, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और दार्जिलिंग में स्क्रब टाइफस के फैलने की खबरें भी आई थीं.स्क्रब टाइफस के सामान्य लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, शरीर में दर्द, रैशेज और चिगर्स के काटने वाली जगह पर पपड़ी का जमा होना भी शामिल हैं. इसके अलावा, मानसिक परिवर्तन, भ्रम से लेकर कोमा तक या लिम्फ नोड्स का बढ़ना भी इसके लक्षण हो सकते हैं. डॉक्टर के अनुसार, गंभीर रूप से बीमार होने पर ऑर्गन फेलियर और ब्लीडिंग होने का खतरा बढ़ सकता है. इसका समय पर इलाज न किए जाने पर ये जानलेवा भी साबित हो सकती है.डॉक्टर के अनुसार, स्क्रब टाइफस के लक्षण दिखने के तुरंत बाद एंटीबायोटिक्स सबसे प्रभावी होते हैं. स्क्रब टाइफस के इलाज में एंटीबायोटिक डॉक्सीसाइक्लिन दी जानी चाहिए. डॉक्सीसाइक्लिन का उपयोग किसी भी उम्र के व्यक्तियों में किया जा सकता है. जिन लोगों में लक्षण दिखने के तुरंत बाद डॉक्सीसाइक्लिन के साथ इलाज किया जाता है, वे आमतौर पर जल्दी ठीक हो जाते हैं.

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