जालंधर : (संजय कालिया)

अन्नकूट,गोर्वधन महोत्सव दीपावली के अगले दिन, कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को गोवर्धन पूजन, गौ-पूजन के साथ-साथ अन्नकूट पर्व सारे भारतवर्ष में मनाया जाता है।

प्राचीन श्री राधा गोविंद देव मंदिर मंडी़ रोड जालंधर में भी अन्नकूट महोत्सव बडी़ ही श्रद्धा भाव से ” हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ” महामंत्र करते हुए ठाकुर जी को छप्पन भोग अर्पित कर मनाया गया ।

“गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक। विष्णुबाहु कृतोच्छाय गवां कोटिप्रदो भव।”

गोवर्धन पर्वत की पूजा के बारे निम्न कथा प्रचलित है-
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भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं और गोप-ग्वालों के साथ गाय चराते हुए गोवर्धन पर्वत पर पहुँचे तो देखा कि वहाँ गोपियाँ 56 प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच-गाकर उत्सव मना रही हैं। श्रीकृष्ण के पूछने पर उन्होंने बताया कि आज के दिन वृत्रासुर को मारने वाले तथा मेघों व देवों के स्वामी इन्द्र का पूजन होता है। इसे ‘इन्द्रोज यज्ञ’ कहते हैं। इससे प्रसन्न होकर इन्द्र ब्रज में वर्षा करते हैं और जिससे प्रचुर अन्न पैदा होता है।

श्रीकृष्ण ने कहा कि इन्द्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसके कारण वर्षा होती है। अत: हमें इन्द्र से भी बलवान गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। बहुत विवाद के बाद श्रीकृष्ण की यह बात मानी गई तथा ब्रज में इन्द्र के स्थान पर गोवर्धन की पूजा की तैयारियाँ शुरू हो गईं। सभी गोप-ग्वाल अपने-अपने घरों से पकवान लाकर गोवर्धन की तराई में श्रीकृष्ण द्वारा बताई विधि से पूजन करने लगे। श्रीकृष्ण द्वारा सभी पकवान चखने पर ब्रजवासी खुद को धन्य समझने लगे। नारद मुनि भी यहाँ ‘इन्द्रोज यज्ञ’ देखने पहुँच गए थे। इन्द्रोज बंद करके बलवान गोवर्धन की पूजा ब्रजवासी कर रहे हैं, यह बात इन्द्र तक नारद मुनि द्वारा पहुँच गई और इन्द्र को नारद मुनि ने यह कहकर और भी डरा दिया कि उनके राज्य पर आक्रमण करके इन्द्रासन पर भी अधिकार शायद श्रीकृष्ण कर लें।

इन्द्र गुस्से में लाल-पीले होने लगे। उन्होंने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर प्रलय पैदा कर दें। ब्रजभूमि में मूसलाधार बरसात होने लगी। बाल-ग्वाल भयभीत हो उठे। श्रीकृष्ण की शरण में पहुँचते ही उन्होंने सभी को गोवर्धन पर्वत की शरण में चलने को कहा। वही सबकी रक्षा करेंगे। जब सब गोवर्धन पर्वत की तराई मे पहुँचे तो श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर छाता-सा तान दिया और सभी को मूसलाधार हो रही वृष्टि से बचाया। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक बूँद भी जल नहीं गिरा। यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी की हुई गलती पर पश्चाताप हुआ और वे श्रीकृष्ण से क्षमा याचना करने लगे। सात दिन बाद श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजवासियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का पर्व मनाने को कहा। तभी से यह पर्व के रूप में प्रचलित है।

श्रीमद्भागवत महापुराण का उल्लेख
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श्रीमद्भागवत महापुराण में बताया है कि
जब इन्द्र को पता लगा कि मेरी पूजा बंद कर दी गयी है, तब वे नन्दबाबा आदि गोपों पर बहुत ही क्रोधित हुए। परन्तु उनके क्रोध करने से होता क्या, उन गोपों के रक्षक तो स्वयं श्रीकृष्ण थे। इन्द्र को अपने पद का बड़ा घमण्ड था, वे समझते थे कि मैं ही त्रिलोकी का ईश्वर हूँ। उन्होंने क्रोध से तिलमिलाकर प्रलय करने वाले मेघों के सांवर्तक नामक गण को ब्रज पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी और कहा- “ओह, इन जंगली ग्वालों को इतना घमण्ड! सचमुच यह धन का ही नशा है। भला देखो तो सही, एक साधारण मनुष्य कृष्ण के बल पर उन्होंने मुझ देवराज का अपमान कर डाला। जैसे पृथ्वी पर बहुत-से मन्दबुद्धि पुरुष भवसागर से पार जाने के सच्चे साधन ब्रह्मविद्या को तो छोड़ देते हैं और नाममात्र की टूटी हुई नाव से-कर्ममय यज्ञों से इस घोर संसार-सागर को पार करना चाहते हैं। कृष्ण बकवादी, नादान, अभिमानी और मूर्ख होने पर भी अपने को बहुत बड़ा ज्ञानी समझता है। वह स्वयं मृत्यु का ग्रास है। फिर भी उसी का सहारा लेकर इन अहीरों ने मेरी अवहेलना की है। एक तो ये यों ही धन के नशे में चूर हो रहे थे; दूसरे कृष्ण ने इनको और बढ़ावा दे दिया है। अब तुम लोग जाकर इनके इस धन के घमण्ड और हेकड़ी को धूल में मिला दो तथा उनके पशुओं का संहार कर डालो। मैं भी तुम्हारे पीछे-पीछे ऐरावत हाथी पर चढ़कर नन्द के ब्रज का नाश करने के लिये महापराक्रमी मरूद्गणों के साथ आता हूँ।”
इस मौके पर अखिल भारतीय श्री चैतन्य गौडि़य मठ के प्राकतन आचार्य पूज्यपाद् श्रील श्री भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी के गृहस्थ शिष्य श्री रोहाणी नंदन दास प्रभु ने वहां उपस्थित भक्तवृंदो को
गोर्वधन लीला को याद करते हुए बताया कि कैसे इन्द्र ने इस प्रकार प्रलय के मेघों को आज्ञा दी और उनके बन्धन खोल दिये ?
अब वे बड़े वेग से नन्दबाबा के ब्रज पर चढ़ आये और मूसलाधार पानी बरसाकर सारे ब्रज को पीड़ित करने लगे। चारों और बिजलियाँ चमकने लगीं, बादल आपस में टकराकर कड़कने लगे और प्रचण्ड आँधी की प्रेरणा से वे बड़े-बड़े ओले बरसाने लगे। इस प्रकार जब दल-के-दल बादल बार-बार आ-आकार खंभे के समान मोटी-मोटी धाराएँ गिराने लगे, तब ब्रजभूमि का कोना-कोना पानी से भर गया और कहाँ नीचा है, कहाँ ऊँचा, इसका पता चलना कठिन हो गया। इस प्रकार मूसलाधार वर्षा तथा झंझावत के झपाटे से जब एक-एक पशु ठिठुरने और काँपने लगा, ग्वाल और ग्वालिनें भी ठण्ड के मारे अत्यन्त व्याकुल हो गयीं, तब वे सब-के-सब भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आये। मूसलाधार वर्षा से सताये जाने के कारण सबने अपने-अपने सिर और बच्चों की निहुककर अपने शरीर के नीचे छिपा लिया था और वे काँपते-काँपते भगवान की चरणशरण में पहुँचे और बोले- “प्यारे श्रीकृष्ण! तुम बड़े भाग्यवान हो। अब तो कृष्ण! केवल तुम्हारे ही भाग्य से हमारी रक्षा होगी। प्रभो! इस सारे गोकुल के एकमात्र स्वामी, एकमात्र रक्षक तुम्हीं हो। भक्तवत्सल! इन्द्र के क्रोध से अब तुम्हीं हमारी रक्षा कर सकते हो।”

भगवान ने देखा कि वर्षा और ओलों की मार से पीड़ित होकर सब बेहोश हो रहे हैं। वे समझ गये कि यह सारी करतूत इन्द्र की है। उन्होंने ही क्रोधवश ऐसा किया है। वे मन-ही-मन कहने लगे- “हमने इन्द्र का यज्ञ भंग कर दिया है, इसी से वे ब्रज का नाश करने के लिये बिना ऋतु के ही यह प्रचण्ड वायु और ओलों के साथ घनघोर वर्षा कर रहे हैं। अच्छा, मैं अपनी योगमाया से इनका भलीभाँति जवाब दूँगा। ये मूर्खतावश अपने को लोकपाल मानते हैं, इनके ऐश्वर्य और धन का घमण्ड तथा अज्ञान मैं चूर-चूर कर दूँगा। देवता लोग तो सत्वप्रधान होते हैं। इनमें अपने ऐश्वर्य और पद का अभिमान न होना चाहिये। अतः यह उचित ही है कि इस सत्वगुण से च्युत दुष्ट देवताओं का मैं मान भंग कर दूँ। इससे अन्त में उन्हें शान्ति ही मिलेगी। यह सारा ब्रज मेरे आश्रित है, मेरे द्वारा स्वीकृत है और एकमात्र मैं ही इनका रक्षक हूँ। अतः मैं अपनी योगमाया से इनकी रक्षा करूँगा। संतों की रक्षा करना तो मेरा व्रत ही है। अब उसके पालन का अवसर आ पहुँचा है।
इस प्रकार कहकर भगवान श्रीकृष्ण ने खेल-खेल में एक ही हाथ से गिरिराज गोवर्धन को उखाड़ लिया और जैसे छोटे-छोटे बालक बरसाती छत्ते के पुष्प को उखाड़कर हाथ में रख लेते हैं, वैसे ही उन्होंने उस गोर्वधन को धारण कर लिया।

इस मौके पर रोहिणी नंदन दास प्रभु, मुरली धर दास प्रभु (पुजारी), सदानंद दास प्रभ, दीनार्थी प्रभु (भक्ति दायित माघ्व गोस्वामी महाराज जी के शिष्य),सनातन दास,अचुत कृष्ण दास, विनोद शर्मा, वृंदावन दास,बबीता देवी दासी, रजनी देवी दासी, प्रौमिला शर्मा, रुक्मिणी देवी दासी, निक्की राजवंशी, श्रीमती मोना, नीकिता कोहली, नंदरानी दासी, अन्य उपस्थित हुए।
तदोपरांत वहां उपस्थित भक्तों द्धारा सामूहिक दीप कर एवं सुस्वादु छप्पन भोग का प्रशाद वितरित किया गया।

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