जालंधर :एपीजे कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स जालंधर में स्कूल ऑफ़ सोशल साइंसेज द्वारा 'इंडियन कॉउंसिल ऑफ सोशल साइंसेज रिसर्च नॉर्थ
वैस्ट रीजन चंडीगढ' (ICSSR) के संयुक्त सौजन्य से एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में
इंडियन कौंसिल ऑफ़ सोशल साइंसेज रिसर्च के निदेशक डॉ संजय कौशिक उपस्थित हुए। प्राचार्य डॉ नीरजा ढींगरा ने मुख्य अतिथि
डॉ संजय कौशिक एवं इस संगोष्ठी में उपस्थित बीज वक्ताओं और स्रोत वक्ताओं का अभिनंदन करते हुए कहा कि एपीजे कॉलेज अपने
संस्थापक अध्यक्ष स्वर्गीय डॉ सत्यपाॅल जी के मानवीय मूल्यों के सिद्धांतों एवं एपीजे एजुकेशन की अध्यक्ष
डॉ श्रीमती सुषमा पॉल बर्लिया के मार्गदर्शन कि अधुनातन युग में वास्तविक और जनकल्याणकारी विकास नैतिक मूल्यों के
बीजमंत्र को अपनाकर ही संभव है, इसको अक्षरशः स्वीकार करते हुए निरंतर प्रगति पथ पर आगे बढ़ते हुए नित नयी बुलंदियों को
चूम रहा है। मुझे बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि इस संगोष्ठी में प्राध्यापक एवं शोधार्थी यहां उपस्थित होकर तो शोध पत्र प्रस्तुत
कर ही रहे हैं लेकिन जो किसी वजह से यहां पर नहीं पहुंच पा रहे हैं उनके लिए ऑनलाइन शोध पत्रों की प्रस्तुति का प्रबंध भी
किया गया हैं । राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रासंगिक विषय 'वन नेशन वन इलेक्शन' की सार्थकता पर उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए
उन्होंने एपीजे एजुकेशन की अध्यक्ष डॉ सुषमा पॉल बर्लिया द्वारा भेजा गया संदेश भी साझा किया। उन्होंने कहा कि सेमिनार
शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और छात्रों के लिए एक अनूठा मंच होगा क्योंकि इस विषय पर चर्चा ने हाल के दिनों में महत्वपूर्ण महत्व
प्राप्त किया है।

संगोष्ठी के प्रारंभ में पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉ एम राजीव लोचन ने बीज वक्ता के रूप में अपने
मुख्य भाषण को प्रस्तुत करते हुए, उन्होंने सर्वसम्मति से निर्णय लेने, भारत में संघवाद के विचार और एक चुनाव की संभावना के
बारे में बात की और साथ ही उन संभावनाओं पर प्रकाश डाला जो देश को बेहतर बना सकते हैं। उन्होंने शिक्षाविदों और विद्वानों
के इस शोध कार्य का उद्देश्य,जानकारीपूर्ण निर्णय लेने के लिए सरकार के समक्ष एक राय रखना बताया। साथ ही, उन्होंने कहा कि
भारत में संप्रभुता भारत के लोगों में निवास करती है और यह शाश्वत है।

दूसरे बीज वक्ता के रूप में 'ट्रेनिंग एंड रिसर्च स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ़ रूरल डेवलपमेंट', 'ट्रेनिंग मैनेजर हिमाचल प्रदेश इंस्टिट्यूट ऑफ़
पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन' शिमला के भूतपूर्व संयुक्त निदेशक डॉ राजीव बांसल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हम सरकार
को कुछ भी नहीं बेच सकते।उन्होंने चुनाव की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बात की और इसे आयोजित करने की चुनौतियों, बजट,
कानूनी चिंताओं के बारे में भी बात की।

स्रोत वक्ता के रूप में इंस्टीट्यूट आफ लीगल स्टडीज पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ के इकोनॉमिक्स विभाग से प्रोफेसर डॉ कंवलजीत
कौर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए एक राष्ट्र एक चुनाव के आर्थिक कार्यान्वयन के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि इस अवधारणा
की कुछ चुनौतियाँ हैं जैसे लागत की समस्या, आर्थिक स्थिरता और प्रशासनिक स्थिरता। इसके क्रियान्वित होने के लिए कुछ कानूनी
संशोधन होने चाहिए और राजनीतिक दलों में व्यवहार्यता पर आम सहमति होनी चाहिए। उन्होंने इसके लिए कुछ सुझाव भी दिए।

दूसरे स्रोत वक्ता के रूप फैकल्टी ऑफ़ लॉ यूनिवर्सिटी इंस्टिट्यूट ऑफ़ लीगल स्टडीज पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से प्रोफेसर डॉ रतन
सिंह ने अपने संबोधन की शुरुआत भारतीय संविधान की प्रशंसा करते हुए की और कहा कि यह पूरी दुनिया में सबसे स्वस्थ,
मजबूत, महान और जीवित संविधान में से एक है। यह जैविक और परिवर्तनकारी है। यह समाज के सभी मुद्दों को अपने साथ
समाहित करता है जो अपने आप में एक निरंतर बदलती रहने वाली अवधारणा है। उन्होंने कहा कि समाज तेजी से आगे बढ़ रहा है
और इसके साथ-साथ संविधान भी विकसित हो रहा है और यह समाज और इसमें रहने वाले सभी लोगों की रक्षा के लिए हमेशा
काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया हर किसी को अपनी राय रखने की आजादी देती है, भले ही
कभी-कभी इसकी संरचना देश के कल्याण से दूर लगती हो, जहां वोट खरीदे जाते हैं और समय के साथ सामाजिक उथल-पुथल देखी
जा सकती है। साथ ही उन्होंने 'एक राष्ट्र एक चुनाव' को भारतीय चुनाव प्रणाली में लागू करने के फायदे और सीमाओं के बारे में भी
बात की।

इस संगोष्ठी में दूसरे टेक्निकल सत्र की अध्यक्षता गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के राजनैतिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ
सतनाम सिंह दियोल ने की। डॉ. सतनाम देयोल ने अपना संबोधन सबसे पहले एपीजे कॉलेज, जो उत्तर भारत के सर्वश्रेष्ठ कॉलेजों में
से एक है, में आमंत्रित किये जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए शुरू किया। एक राष्ट्र एक चुनाव विषय पर अपने विचार रखते हुए
उन्होंने कहा कि वास्तव में यह अव्यावहारिक या लगभग असंभव है। उन्होंने दर्शकों को 1952 में हुए पहले आम चुनावों पर विचार
कराते हुए अपने दृष्टिकोण का समर्थन किया। लोकतंत्र के अधिकार के कारण बहुत सारी चुनौतियाँ थीं जिनका प्रयोग सभी कर
सकते हैं। डॉ. देयोल ने चुनावी प्रक्रिया की संरचनात्मक चुनौतियों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने यह भी सवाल किया कि बढ़ती
जनसंख्या के साथ, सरकार में सीटों की संख्या अभी भी वही बनी हुई है और इस आधुनिक 21वें तकनीकी प्रेमी युग में भी, आज तक
उन लोगों के लिए कोई योग्यता बताई या अनिवार्य नहीं की गई है जो उन्हें चुनाव में खड़े होने के योग्य बनाती है। उन्होंने अनुमान
लगाया कि जब तक इन संरचनात्मक और कार्यात्मक चुनौतियों का समाधान नहीं हो जाता; एक राष्ट्र एक चुनाव एक सपना
बनकर रह जायेगा।
सह-अध्यक्ष के रूप में गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट के अध्यक्ष एसोसिएट प्रोफेसर डॉ रूपम जगोटा उपस्थित थे।

इस अवसर पर उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत यह सवाल उठाते हुए की कि क्या एक राष्ट्र एक चुनाव की अवधारणा वास्तव में
पूरे देश की एकता की ओर ले जाती है या वास्तव में लोकतंत्र के विचार के लिए खतरा है। उन्होंने कहा, सतह पर एक राष्ट्र एक
चुनाव का विचार काफी अच्छा है लेकिन वास्तव में, यह गुलाबों की सेज नहीं है और वास्तव में इसे लागू करना एक बहुत ही जटिल
कार्य है। इससे कई सवाल उठते हैं जैसे कि इसका राजनीतिक दलों पर क्या प्रभाव पड़ेगा और क्या देश के लोग इतने शिक्षित हैं कि
इसके पीछे के मकसद को समझ सकें और इस तरह वोट देने के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकें। उन्होंने कहा कि वास्तव में इसे
लागू करने का प्रयास करने से पहले सभी चुनौतियों को समझना महत्वपूर्ण है। उन्होंने वास्तविक इलेक्टोरल प्रक्रिया पर भी सवाल
उठाया जो एक चुनौतीपूर्ण कार्य है और फिर इसे भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए आवश्यक वित्तीय सहायता पर भी सवाल उठाया।
उन्होंने पात्रता मानदंड और उस आधार के बारे में भी बात की जिसके आधार पर राजनीतिक दलों की पात्रता निर्धारित की जा
सकती है।
तीसरा टेक्निकल सत्र वर्चुअल मोड पर था जिसकी अध्यक्षता डॉ रूपम जगोटा एवं सह-अध्यक्षता एपीजे कॉलेज की इकोनॉमिक्स
विभाग की अध्यक्ष डॉ सुप्रीत तलवाड़ ने की। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में सोशल मीडिया एवं इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया का चुनाव पर
प्रभाव, वूमैन रिजर्वेशन बिल,वन नेशन वन इलेक्शन की जरूरत एवं चुनौतियां, धर्म और राजनीति, वन नेशन वन इलेक्शन का
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव जैसे विषयों पर शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। डॉ संजय कौशिक ने राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन-समारोह में अपने
विचार व्यक्त करते हुए कालेज में उपस्थित होने पर प्रसन्नता व्यक्त की तथा छात्रों के सर्वांगीण विकास एवं जिम्मेदार नागरिक बनने
हेतु कालेज के प्रयासों की सराहना की। भविष्य उन्होंने यह भी कहा कि आगे बढ़ने के रास्ते में निस्संदेह चुनौतियाँ हैं और यह आज
हमारे प्रस्ताव के मामले में भी सच है, जैसे कि वन नेशन वन इलेक्शन, क्योंकि इसका व्यावहारिक कार्यान्वयन निश्चित रूप से
चुनौतीपूर्ण होगा। अंत में उन्होंने सेमिनार के सफल आयोजन के लिए मैडम प्रिंसिपल डॉ. नीरजा ढींगरा को बधाई दी।

डॉ ढींगरा ने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी की अपार सफलता के लिए संगोष्ठी के कोऑर्डिनेटर श्री विश्वबंधू वर्मा एवं डॉ सिंम्की देव तथा
इस संगोष्ठी के इंचार्ज डॉ मोनिका आनंद एवं डॉ गगन गंभीर के प्रयासों की प्रशंसा की।

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