
दिल्ली: दो हफ्ते की बेचैनी और कूटनीतिक कोशिशों के बाद आखिरकार वह घड़ी आ ही गई, जब पाकिस्तान ने भारत के उस बीएसएफ जवान को लौटाया जो गलती से सीमा पार कर गया था। वाघा-अटारी बॉर्डर पर सुबह का माहौल आम दिनों से अलग था- भारत के हाथ में था अपना एक सपूत, जिसे पाकिस्तान रेंजर्स ने हिरासत में ले रखा था।लेकिन क्या ये वापसी महज एक सद्भावना का इशारा था? नहीं। इसके पीछे एक मजबूत वैश्विक कानून है, जिसे हर देश को मानना पड़ता है—चाहे हालात कितने भी तनावपूर्ण क्यों न हों। ये कानून है जिनेवा कन्वेंशन।बीएसएफ का जवान जब गलती से सीमा पार कर गया, तब वह निहत्था था और हमला नहीं कर रहा था। ऐसे मामलों में किसी देश को अधिकार नहीं होता कि वह बर्बरता करे या सैनिक को अनिश्चितकाल तक रोके रखे। अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक, अगर कोई जवान या नागरिक किसी अन्य देश की सीमा में गलती से प्रवेश कर लेता है और वह लड़ नहीं रहा होता, तो उसे एक निश्चित प्रक्रिया के तहत सुरक्षित तरीके से वापस लौटाया जाना होता है। यही वजह है कि पाकिस्तानी रेंजर्स ने बातचीत के बाद भारतीय जवान को सौंप दिया।